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________________ [१] आड़ाई : रूठना : त्रागा ४७ अगली बार लाख भी नहीं लगाऊँगा। फिर छोड़ आऊँगा। दरार पर लाख लगा दी एक बार कि जोड़ लो अब! प्रश्नकर्ता : उन्होंने वह दरवाज़ा पटका, स्टोव पटका, तो वह भी आड़ाई कहलाएगी न? दादाश्री : आड़ाई नहीं तो फिर और क्या? लेकिन वह त्रागा कहलाता है। उन्होंने छोटे प्रकार का त्रागा किया था। मैंने बड़े प्रकार का त्रागा किया। प्रश्नकर्ता : यानी उस छोटे प्रकार के त्रागे को निकालने के लिए उसके सामने फोर्स' रखना पड़ा? दादाश्री : हाँ, मैंने जान-बूझकर त्रागा किया था और उन्होंने खुद के कर्म के नियमानुसार त्रागा किया था। वे तो प्रकृति के अधीन रहकर करती है, जबकि मैं तो मेरे ज्ञान में रहकर करता हूँ न! सभी महात्मा, पाँच-सात-दस लोग बैठे थे। तो एक ने कहा, 'ऐसा कहीं किया जाता होगा?' तब मैंने कहा, 'सीख, तुझे सिखा रहा हूँ। चुप बैठ। यह सिखा रहा हूँ तुझे। घर पर पत्नी परेशान करेगी, तब किस तरह से करेगा तू?' प्रश्नकर्ता : आपने कहा न, कि 'मैंने ज्ञान में रहकर किया।' तो ज्ञान में किस तरह से, वह बताइए आप। दादाश्री : ज्ञान ही-'ये' करते रहे, 'अंबालालभाई' करते रहे । ज्ञान ने थोड़े ही हीरा बा से शादी की हुई है। देखो न, बिना मतभेद के वर्षों निकाल दिए न! लेकिन अभी भी हम मतभेद पड़ने से पहले खत्म कर देते हैं। फिर से 'ज्ञान' भी लिया था हीरा बा ने! सपने में दादा आए थे फिर उनके। वर्ना, चालीस सालों से हम किसी से तेज़ आवाज़ से नहीं बोले हैं। किसी के सामने आवाज़ ऊँची नहीं की थी। वह तो सभी लोग जानते हैं। कहते भी हैं कि 'ये तो भगवान जैसे हैं!' त्रागा भी एक कला त्रागा करना भी कला है, बहत्तर कलाओं में से एक कला है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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