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________________ ४२ आप्तवाणी - ९ तायफा के सामने हमारे एक रिश्तेदार थे, वे आए, तब एक स्त्री (बहन) ने त्रागा करना शुरू किया तो वे भाई, जो हमारे रिश्तेदार थे न, वे घबरा गए, 'अरे, अरे, ऐसा नहीं करते।' मैंने कहा, 'ऐसे नहीं, वह थोड़ा कूद ले, उसके बाद हम शांति से चाय पीएँगे। अभी तू देख तो सही । देखने लायक है, अच्छा। कितना अच्छा लग रहा है यह!' इतना कहा कि उस स्त्री ने तुरंत बंद कर दिया, और कहने लगी, 'मेरा तायफा (फज़ीता, जान-बूझकर किसी को परेशान करने के लिए किया गया नाटक) कर रहे हो?' मैंने कहा, 'तायफा कर रही हो, तो तायफा ही देखेंगे न ! और क्या करेंगे ?!' प्रश्नकर्ता : यदि हम तायफा करने वाले से कहें कि तायफा है तो हमें डबल मार पड़ेगी । दादाश्री : ऐसी मार पड़े तो आप तायफा शब्द मत बोलना। पहले तो ज़रा धीरे से लेना पड़ेगा। मैंने भी पहले तो धीरे से कहा, फिर सख़्ती की। वे उल्टा-सीधा कहने लगीं, तब फिर ज़ोर से चाबी घुमाने लगे । जैसे स्क्रू टाइट करते हैं न, वैसे। वे नरम पड़ गईं फिर । तायफा से तो दुनिया काफी कुछ बच सकती है लेकिन इस त्रागे से तो नहीं बच सकती । त्रागे से ही बेचारे लोगों को मार डाला है ! और वह भी कितने ही लोगों को ! और कईं पुरुष भी त्रागा करते हैं। इस तरीके से भी मतभेद टाला खुद की मनमानी नहीं होती, तब त्रागा करते हैं । मनमानी करवाने के लिए करे उसे त्रागा कहते हैं। खुद की मनमानी करवाने के लिए, दूसरे सभी लोगों को डराने के लिए नाटक करना, वह त्रागा कहलाता है। अरे तूफान, तूफान ! किसी मनुष्य का हृदय कमज़ोर हो, ढीला हो, तो वे सभी घबरा जाते हैं बेचारे ! हमने भी एक दिन त्रागा किया था। सभी बर्तन, शक्कर के, चाय
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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