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________________ संपादकीय अनंत जन्मों से जीव मोक्ष में जाने के लिए प्रयत्नशील है। कितनी ही बार चढ़ता है और कितनी ही बार गिरता है। मनचाहा परिणाम आने से कौन रोकता है ? मोक्ष की साधना करने वाले व करवाने वाले लोग काफी कुछ अंशों तक 'साधक कारणों' को पा सकते हैं, लेकिन 'बाधक कारणों' को देखकर और समझकर उनसे विरक्त रह सकते हैं सिर्फ किसी ही काल में प्रकट होने वाले ज्ञानी! जब प्रत्यक्ष प्रकट ज्ञानीपुरुष मिल जाएँ तभी मोक्षमार्ग पूर्णरूप से खुल जाता है, इतना ही नहीं लेकिन अंत तक पहुँच जाते हैं! मोक्षमार्ग में आगे बढ़ने का मार्ग कहीं-कहीं पर मिल आएगा, लेकिन ऊँचे चढ़ते-चढ़ते जो 'डेन्जरस पोइन्ट्स' आते हैं उनकी लालबत्तियाँ कहीं भी नहीं मिलती। चढ़ने के रास्तों की जितनी महत्ता है, उससे अनेक गुना महत्वपूर्ण है, फिसलने वाले स्थानकों की जानकारी और वहाँ सतर्कता रखना। और उस सतर्कता के बिना वह चाहे जितना पुरुषार्थ करे तब भी गिरता ही रहेगा। आत्मसाधना करते-करते साधक कहाँ-कहाँ खुद, खुद के लिए ही बाधक बन जाता है, इस चीज़ की साधना अत्यंत तीक्ष्ण जागृति के बिना सिद्ध नहीं हो सकती। अर्थात् इस पुरुषार्थ में मुनाफा प्राप्त करने से अधिक, नुकसान को किस तरह से रोका जाए, वह अति-अति महत्वपूर्ण है। ज्ञानीपुरुष मिल जाएँ और ज्ञानीपुरुष की पहचान हो जाने के बाद उनकी आराधना शुरू हो जाए, उससे पहले तो जो संसार में ही, व्यवहार में ही उलझे हुए थे, वे ही, संसार की साधना करने वाले ही, अब मोक्षमार्ग की साधना की ओर मुड़ते हैं। अब बाकी बचा हुआ व्यवहार जब आवश्यकरूप से पूरा करना होता है, तब जाने-अनजाने में संसार की साधना भी हो जाती है, उस लीकेज को कौन दिखाएगा? उन तमाम लीकेज को सील करने के लिए व्यवहारज्ञान-अध्यात्मज्ञान और अध्यात्मविज्ञान तक का ज्ञान, ज्ञानकला और बोधकला यहाँ पर प्रकट ज्ञानीपुरुष द्वारा अनावरित हुए हैं। मोक्षमार्ग अर्थात् मुक्ति का मार्ग, संसारी बंधनों से मुक्त होने का मार्ग। मुक्ति के साधन मानकर साधक जो-जो करता है, उससे उसे मुक्ति
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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