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________________ ३२ आप्तवाणी-९ आत्मा को ही देखता है! आत्मा दूसरी अवस्थाओं को देखता ही नहीं है। जो चिढ़ा हुआ है, वही चिढ़ने वाले को देखता है। तब मैंने उस व्यक्ति से कहा कि, 'पत्नी रूठी हुई थी, वह उसका आत्मा नहीं था। वह तो पत्नी है और यह जो रिसाल है, वह तेरा आत्मा नहीं है। पत्नी किस पर नाराज़ होती है? रिसाल पर नाराज़ होती है। उसे तू देख! तू बस देखता रह।' इससे सॉल्यूशन आएगा न! नहीं तो सॉल्यूशन कैसे आएगा? यों तो कोई रूठा रहता है, कोई गालियाँ देता रहता है, और यह तो ऐसा ही रहता है, लेकिन आत्मा इन सब पर्यायों से अलग है। आत्मा इसमें किसी भी जगह पर नहीं है। यह सब हो रहा है, वह किस आधार पर? हर किसी के कर्मों के कारण है ये सब। ये कर्म फल मिलते रहते हैं, उसमें 'हमें' क्या लेना-देना? हर कोई अपने-अपने कर्म भुगत रहा है, उसमें 'हमें' क्या लेना-देना? यह इस प्रकार से है। यदि आत्मा प्राप्त करना हो तो आत्मा देखो, और कुछ भी देखने जैसा नहीं है। हमारी समझ में कैसा होगा? आपकी समझ और हमारी समझ में फर्क होगा न? हमें कोई भी दुःख स्पर्श नहीं करता, उसका क्या कारण है? क्योंकि हमारे साथ हमारी समझ है। हम नासमझी को खींचकर नहीं ले आते जबकि यह तो नासमझी को बाहर से, लोगों के पास से खींच लाता है। हमें लोगों से क्या लेना-देना? सबकुछ 'व्यवस्थित' है, हिसाब है। हिसाब से बाहर कुछ भी बदलनेवाला नहीं है। बहियों के हिसाब से बाहर परिवर्तन होता है क्या? तो फिर क्यों करें यह सब? और अगर पत्नी रूठ जाए, तो जो रिसाल होता है वही उस रूठी हुई को देख सकता है, उसका आत्मा नहीं देख सकता। जो रिसाल होता है वही देखता है। रिसाल व्यक्ति रूठे हुए को देखता है। वर्ना कोई रूठा हुआ क्यों दिखना चाहिए? मेरे पास क्या रूठे हुए लोग नहीं आते होंगे? लेकिन मुझे कोई रूठा हुआ दिखाई ही नहीं देता। कुछ हिसाब तो निकालना पड़ेगा न? यों बगैर हिसाब की बहियाँ चलती होंगी क्या? हिसाब तो होना चाहिए न?
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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