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________________ [१] आड़ाई : रूठना : त्रागा आत्मा का मुख्य स्वभाव है, जैसी चिंतना करे वैसा बन जाता है। आप कहो कि ‘मैं भगवान हूँ', तो वैसे बन जाओगे और आप कहो कि, ‘मैं नालायक हूँ' तो वैसे बन जाओगे । कहते ही उस रूप बन जाओगे। भगवान बनना चाहिए ऐसा कहो, तो उस घड़ी भगवान बन भी जाओगे, लेकिन अगर कहोगे कि 'अब क्या करूँ ?' यानी आपको आता नहीं है, इसलिए वापस जैसे थे वैसे के वैसे मूर्ख बनकर खड़े रहोगे । आना तो चाहिए न? आपको जो पद प्राप्त हुआ है वहाँ पर 'मुझे क्या करना है' वह आना चाहिए न ? नहीं तो वापस जैसे थे, वैसे के वैसे बन जाओगे । यानी आत्मा जैसी चिंतना करे, वैसा ही बन जाता है, ऐसा होने से अनेक प्रकार के रूप और रूपांतर सब होते ही रहते हैं । और जो चिंतना करता है, वह चिंतना भी स्वतंत्र रूप से नहीं करता । आसपास के दबाव के कारण वैसी चिंतना करता है । १७ यह ज्ञान ही वर्तना में प्रश्नकर्ता : तो आड़ाई का रूटकॉज़ क्या है ? दादाश्री : अहंकार । प्रश्नकर्ता : लेकिन वे जो कॉज़ेज़ किए हुए हैं, उनका इफेक्ट है न ? दादाश्री : यह इफेक्ट है, लेकिन कॉज़ेज़ किए थे तभी न ! कॉज़ेज़ कैसे डलते हैं? पहले आड़ाई का ज्ञान होता है कि टेढ़ा हो जाऊँगा न, तो सब ठिकाने पर आ जाएँगे। ऐसा उसे ज्ञान होता है। 'घर के सभी लोगों को ठिकाने पर लाने के लिए आड़ाई करूंगा, वास्तव में आड़ाई काम में आती है ।' ऐसा ज्ञान होता है उसे । फिर श्रद्धा बैठती उस पर । वह श्रद्धा उस ज्ञान को स्ट्रोंग बनाती है। अगर ज्ञान श्रद्धारहित होगा न, तब तो खत्म हो जाएगा लेकिन श्रद्धा बैठ गई है इसलिए फिर श्रद्धा उसे मज़बूत करती है और फिर वह आड़ाई चारित्र में आती है और देखो फिर जो मज़ा आता है ! आड़ाईयाँ हर एक की अलग प्रश्नकर्ता : सभी की एक जैसी आड़ाईयाँ नहीं होतीं न ?
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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