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________________ आप्तवाणी-९ दादाश्री : उसका पता नहीं चलता। वह तो अंदर गहराई में उतरना पड़ता है। आड़ाईयों को देखने के लिए निष्पक्षपाती रुख रखना पड़ता कोई आपसे कहे कि, 'आड़ाई क्यों कर रहे हो?' तब आप कहते हो, 'देखो न, मूर्ख है न! मैं आड़ाई कर रहा हूँ या वह कर रहा है?' सामनेवाला बल्कि हमें अपनी आड़ाईयों की जाँच करने के लिए कह रहा है, तो अंदर जाँच करो। ये तो ऐसा है आप अपनी आड़ाईयों की जाँच तो नहीं करते, बल्कि आप उसमें आड़ाईयाँ ढूँढते हो। मुझे कोई क्यों नहीं कहता कि आप आड़ाई क्यों कर रहे हो?! अब यदि मुझमें आड़ाईयाँ देखे, तो वह कहे बगैर रहेगा ही नहीं। जगत् तो जैसा देखता है, वैसा ही कहता है। __ आड़ाई छूटते ही... ये लोग तो कहते हैं, 'तेरी बनाई हुई चाय नहीं पीऊँगा।' ओहोहो, तो फिर किसकी बनाई हुई चाय पीएगा अब? यानी वह जो पति है, वह धमकाता है पत्नी को। क्या कहेगा? 'तूने चाय बिगाड़ दी न, इसलिए अब कभी तेरे हाथ की चाय नहीं पीऊँगा।' धमकाता है बेचारी को, आड़ाई करता है। कितनी आड़ाईयाँ ! उस वजह से दुःख पड़ते हैं न! यानी आड़ाईयाँ ही बाधक हैं। मोह तो बिल्कुल भी बाधक नहीं है। वह तो दो बार मोह रहेगा, और फिर तीसरी बार भीतर से ऊब जाएगा। ____ अच्छा भोजन हो, लेकिन मुँह फुलाकर खिलाएँ तो? अच्छा नहीं लगेगा न? 'रहने दे तेरा खाना' ऐसा कहेगा न? अरे, मुँह चढ़ाकर तो अगर हीरे भी दिए जाएँ तो अच्छा नहीं लगेगा। इन साहब का मुँह चढ़ा हुआ हो और हीरा दे जाएँ तो आप क्या कहोगे? 'लो आपका हीरा अपने घर ले जाओ।' ऐसा कहोगे या नहीं? तो हीरे की कीमत अधिक है या मुँह चढ़ाने की? अपने यहाँ लोग हीरा नहीं लेते। जबकि फॉरेन में तो विलियम का मुँह चढ़ा हुआ हो, फिर भी लेडी खा लेती है। और
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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