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________________ [९] पोतापणुं : परमात्मा ४५३ ___ जब तक वह पोतापणुं है तभी तक भेद है और तभी तक भगवान दूर हैं। पोतापणुं छोड़ दिया तो भगवान आपके पास ही हैं। छोड़ दो न, बिल्कुल आसान है! पोतापणुं छोड़ दिया तो आपका सब भगवान ही चला लेंगे। आपको कुछ नहीं करना होगा, यदि आप पोतापणुं छोड़ दोगे तो। 'दादा भगवान' किसे समझते हो आप इसमें? ये जो दिखाई देते हैं न, यह तो 'पब्लिक ट्रस्ट' है, 'ए.एम.पटेल' नामक और इन्हें जिनके वहाँ सत्संग के लिए ले जाना हो, वहाँ ले जाते हैं। जैसे संयोग हों वैसे ले जाते हैं क्योंकि इसमें 'हमारा' पोतापणुं नहीं है। श्रीमद् राजचंद्र ने क्या कहा है ? 'ज्ञानीपुरुष' कौन? वे जिन्हें किचिंत्मात्र किसी भी प्रकार की स्पृहा नहीं है, जिन्हें दुनिया में किसी प्रकार की भीख नहीं है, जिन्हें उपदेश देने की भी भीख नहीं है या शिष्यों की भी भीख नहीं है, किसी को सुधारने की भी भीख नहीं है, किसी भी प्रकार का गर्व नहीं है, गारवता नहीं है, पोतापणुं नहीं है। इस पोतापणुं में सबकुछ आ जाता है। इस वर्ल्ड' में कोई ऐसा इंसान नहीं है कि जिसे पोतापणुं नहीं हो, अपनी इस दुनिया में। ब्रह्मांड की बात अलग है। वहाँ तो कईं तीर्थंकर हैं, सबकुछ है। जबकि अपनी दुनिया में, कोई ऐसा इंसान नहीं होगा जिसमें पोतापणुं नहीं हो। जिनमें पोतापणुं नहीं है, ऐसे तो सिर्फ वे ही होते हैं जो तीर्थंकर गोत्र में नापास हुए हैं। 'ज्ञानी' में पोतापणुं नहीं होता | पोतापणुं रहित के क्या लक्षण होते हैं ? पोतापणुं नहीं होता, यानी क्या है कि सत् पुरुष से ऐसा कहो कि 'आज मुंबई चलिए।' तब वे ऐसा नहीं कहते कि 'नहीं'। लोग उन्हें मुंबई ले जाएँ तो वे पोटली की तरह चले जाते हैं, और पोटली की तरह अहमदाबाद आ जाते हैं। यानी कि पोतापणुं नहीं है। हमसे कोई पूछे कि, 'दादाजी, हम कब जाएँगे?' तब हम कहते हैं, 'आपको ठीक लगे, वैसा।' हम और कुछ नहीं कहते।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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