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________________ [८] जागृति : पूजे जाने की कामना आप कैसे हो इसलिए हमें फँसाना मत।' 'आप' इस तरह से बातचीत करना । 'आपको इतना करना आया तो हम आपके साथ है, लेकिन हमें फँसाया तो आ बनेगी समझो, ' कहना । ४४१ ऐसे करते-करते ही बड़े हुए हैं न ! बच्चा चढ़ता है, गिरता है, खड़ा होता है, ऐसे करते-करते वह बाबा गाड़ी धकेलता है, ऐसे करतेकरते चलना सीख जाता है न! उसी तरह चलना सीखता है न! यही रास्ता है न! इसलिए यदि काम पूर्ण करना हो न, तो एक ही बात याद रखना कि कोई पूछे तो कहना, 'मुझे कुछ पता नहीं है, दादाजी के पास जाओ।' पूर्णता के बगैर गिरा देता है 'उपदेश ' जब तक पूर्णाहुति नहीं हो जाए तब तक बोलने की बात में पड़ना ही मत। यह पड़ने जैसी चीज़ नहीं है। हाँ, हम किसी को इतना कह सकते हैं कि, 'वहाँ पर सत्संग अच्छा है । ऐसा सब है, वहाँ पर जाओ । ' इतनी बातचीत कर सकते हैं । उपदेश नहीं दे सकते। यह उपदेश देने जैसी चीज़ नहीं है । यह 'अक्रम विज्ञान' है । 'दादा' का ज्ञान जिसने प्राप्त किया है, उस ज्ञान में से जो माल निकलता है न, उसे सुनकर तो पूरी दुनिया सबकुछ धर देगी । और धर देने पर तो क्या होता है ? फँसता है फिर! सभी कषाय जो उपशम हो चुके थे न, वे फटाफट जागृत हो उठेंगे। आकर्षण वाली वाणी है यह । यह ज्ञान आकर्षक है इसलिए मौन रहना । यदि पूरा हित चाहते हो तो मौन रहना। अगर दुकान जमानी हो तो बोलने की छूट है और दुकान चलेगी भी नहीं। दुकान खोलोगे तो भी नहीं चलेगी, खत्म हो जाएगी क्योंकि ‘दिया हुआ ज्ञान' है न, तो उसे खत्म होने में देर नहीं लगेगी दुकान तो क्रमिक मार्ग में चलती है। दो जन्म, पाँच जन्म या दस जन्म तक चलती है और फिर वह भी खत्म हो जाती है। दुकान खोलना यानी सिद्धि बेच देना। आई हुई सिद्धि को बेचने लगे, दुरुपयोग किया ! I गोशाला जो था न, वह पहले तो महावीर भगवान का शिष्य था,
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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