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________________ ४३८ आप्तवाणी-९ है तब क्या कहता है ? 'भगवान ने किया।' अरे पगले, कमाया तब 'मैंने किया' कह रहा था। जब गर्व रस उत्पन्न होता है, उस घडी मिठास आती है। जब मीठा लगे न, तब जान लेना कि मार पड़ने वाली है। नमकीन व मीठे का भेद नहीं रहे, तब जानना कि ज्ञान है। जिसके लिए नमकीन व मीठे में भेद नहीं रहे, तब जानना कि ज्ञान है! जहाँ 'विशेषता,' वहाँ विष प्रश्नों का खुलासा नहीं दे सकते। एक अक्षर भी नहीं बोल सकते। सिर्फ सहज रूप से बातचीत कर सकते हैं वर्ना दूसरों में और अपने में फर्क मत मानना। यह तो विशेषता दिखाने के लिए बोलते हैं और वही सारे कषाय करवाते हैं न! हमारा एक भी वाक्य विशेषभाव वाला नहीं होता। कुदरती रूप से ही निकलता रहता है क्योंकि हमारी 'रिकॉर्ड' है न! आपकी वाणी 'रिकॉर्ड' बन जाए तो फिर परेशानी नहीं है। 'रिकॉर्ड' बन जाए, उसके बाद हो चुका। अभी 'रिकॉर्ड' नहीं बनी है। नहीं?! कोई दो लोग बात कर रहे हों न, तो अक्लमंदी दिखाने का मन होता है लेकिन उसे 'ज्ञान' नहीं कहते। यह स्पर्धा और विवाद करने जैसी चीज़ नहीं है। स्पर्धा नहीं होनी चाहिए। स्पर्धा वाली सारी चीजें सांसारिक हैं! समकित द्वारा क्षायक की ओर जैसे-जैसे जागृति बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे उपशम हो चुके गुण क्षय होते जाते हैं। इस जागृति का फायदा उठाना है। बाहर के जो कर्म उपशम हो गए हों, वे सामायिक करने से क्षय हो जाते हैं लेकिन फिर भी जब तक 'टेस्टेड' नहीं हो जाए, तब तक कुछ नहीं होगा। जीवन में 'टेस्टिंग इग्जामिनेशन' आना चाहिए। बाकी, जागृति तो वह है कि यह दिखे, वह दिखे, सबकुछ दिखे। पूरे दिन ये 'दादा' ही याद रहा करें। 'मैं शुद्धात्मा हूँ'-यह सब 'दादा'
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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