SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७६ आप्तवाणी-९ है इसलिए रोज़ शाम को हमें पूछना चाहिए कि, 'चंदूभाई हो या शुद्धात्मा?' तो कहेगा कि, 'शुद्धात्मा!' तो पूरा दिन शुद्धात्मा का ध्यान रहा कहा जाएगा। प्रश्नकर्ता : हम ऐसा कहेंगे तो लोग हमें पागल कहेंगे। दादाश्री : पागल कहेंगे तो 'चंदूभाई' को पागल कहेंगे। आपको तो कोई कहेगा ही नहीं। आपको तो पहचानते ही नहीं है न! 'चंदूभाई' को कहेंगे तो 'आप' कहना कि, 'चंदूभाई, आप होंगे तभी कह रहे होंगे और अगर आप नहीं हो फिर भी अगर कहेंगे तो उनकी जोखिमदारी। वह फिर आपकी जोखिमदारी नहीं है।' 'आपको' ऐसा कहना है। प्रश्नकर्ता : हमें कोई कुछ कहे, पागल कहे, बेअक्ल कहे, तो अच्छा नहीं लगता। दादाश्री : ऐसा है न, आपको हँसना हो तो आटा नहीं फाँकना चाहिए और आटा फाँकना हो तो हँस नहीं सकते। दोनों में से एक रखो। आपको मोक्ष में जाना है, तो लोग पागल भी कहेंगे और मारेंगे भी सही, सभी कुछ करेंगे लेकिन आपको अपनी बात छोड़ देनी पड़ेगी। आप कह देना, 'भाई, मैं तो हारकर बैठा हूँ।' हमारे पास एक सज्जन आए थे। मैंने उनसे कहा कि, “आपको हारकर जाना पड़ेगा। इसके बजाय मैं हारकर बैठा हूँ। तू आराम से खाकर-ओढ़कर सो जा न! तुझे जिसकी ज़रूरत थी, वह तुझे मिल गया। 'दादा' को हराने की इच्छा है न? तो मैं खुद ही कबूल करता हूँ कि मैं हार गया।" अर्थात् इनकी बराबरी कैसे कर पाएँगे? यह सारी तो माथापच्ची कहलाती है। इस देह को मार पड़े तो अच्छा, लेकिन यहाँ तो दिमाग़ को मार पड़ती है। वह तो बहुत परेशानी है। जगत् की मिठास चाहिए और यह भी चाहिए, दोनों नहीं होगा। जगत् में तो अगर कोई हराने आएँ न, तो हारकर बैठना चाहिए चैन से। लोग तो उनकी भाषा में जवाब देंगे। 'बड़े शुद्धात्मा हो गए हो?' ऐसी सब गालियाँ भी देंगे क्योंकि लोगों का स्वभाव ही ऐसा है। खुद को
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy