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________________ [६] लघुतम : गुरुतम इस गुरुतम पद की प्राप्ति की । रास्ता मुश्किल नहीं है, इसे समझना मुश्किल है। ३५१ इस लघुतम का योग किया जाए न, तो भगवान उनके पास आते ही हैं। जगत् में सभी लोग गुरुतम योग में पड़े हैं । 'मैं इससे बड़ा और मैं उससे बड़ा ।' अरे, छोटा बनता जा न ! यों व्यवहार में छोटा होता जाएगा तो वहाँ निश्चय में बड़ा और जो व्यवहार में बड़े बनने गए, वे निश्चय में छोटे रहे। यानि अगर लघुतम योग पकड़ेगा न, तो जब लघुतम बन जाएगा तब उस ओर गुरुतम बन जाएगा ! जो व्यवहार में लघुतम बना, वह निश्चय में गुरुतम अर्थात् भगवान का ऊपरी बनता है क्योंकि भगवान उसके वश हो जाते हैं। भगवान का कोई ऊपरी नहीं होता लेकिन भगवान उसके वश में हो जाते हैं । इसलिए लघुतम बनना अब । लघुतम योग है ज़रा मुश्किल । पहले ज़रा मुश्किल लगता है, फिर आसान हो जाएगा। जिसे छोटा बनना है उसे भय रहेगा क्या ? इसलिए हम पहले लघुतम हो गए, उसके बाद हमें गुरुतम की दशा प्राप्त हुई । हम गुरु होने के लिए नहीं हैं। जो गुरु हुए न, वे तो सभी यहाँ पर इस चार गति के चक्कर में अभी तक भटक ही रहे हैं। पहले थोड़ा पुण्य बंधता है, तो देवगति में जाता है और देवगति से वापस यहाँ आता है और पाप बंधते हैं तब जानवर में जाता है वापस ! यों गुरुतम योग करते हैं । उस तरह के योग तो बहुत दिनों तक किए हैं। अनंत जन्मों से निरे योग ही किए हैं न ! फिर लोग ज़रा 'बाप जी, बाप जी' करते हैं तो था ही चुटकीभर, वह भी लुट जाता है । थोड़ा बहुत 'बाप जी' कहते हैं, तब कहता है, 'यह नहीं, यह ले आना, यह ले आना, यह ले आना।' इसलिए लुट जाते हैं वापस । जबकि लघुतम योग तो अच्छा है। उसमें तो कोई आता ही नहीं न, दर्शन करने ही नहीं आता है न! साधो योग लघुतम का यानि हमारा योग लघुतम है ! दुनिया में किसी के पास ऐसा योग I नहीं है
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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