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________________ ३४४ आप्तवाणी-९ लघुतम पढ़ते हुए मिले भगवान बचपन में गुजराती स्कूल में एक मास्टर जी ने मुझसे कहा, 'आप यह लघुतम सीखो।' तब मैंने कहा, 'लघुतम यानी आप क्या कहना चाहते हैं ? लघुतम कैसे हुआ जा सकता है ?' तब उन्होंने कहा, 'ये सभी संख्याएँ जो दी हैं, उनमें से सब से छोटी संख्या, अविभाज्य संख्या, जिसमें फिर से भाग नहीं लगाया जा सके ऐसी रकम, वह ढूँढ निकालनी है।' तब मैं उस समय में छोटी उम्र में भी लोगों को क्या कहकर बुलाता था? ये 'संख्याएँ' अच्छी नहीं हैं। ऐसा शब्द बोलता था तो यह बात मुझे माफिक आ गई इसलिए मुझे ऐसा लगा कि इन 'संख्याओं' के अंदर फिर ऐसा ही है न?! अर्थात् भगवान सभी में अविभाज्य रूप से रहे हुए हैं। इसलिए तभी से मेरा स्वभाव लघुतम की तरफ झुकता गया। वह लघुतम हुआ नहीं, लेकिन झुका ज़रूर और आखिर में लघुतम बनकर खड़ा रहा। अभी ‘बाइ रिलेटिव व्यू पोइन्ट आइ एम कम्प्लीट लघुतम' और 'बाइ रियल व्यू पोइन्ट आइ एम कम्प्लीट गुरुतम।' अतः इन संसारी बातों में, जब तक संसारी वेश है, उस बारे में मैं लघुतम हूँ। यानी यह लघुतम की 'थ्योरी' पहले से 'एडोप्ट' हो गई थी। ___ महत्व, लघुतम पद का ही प्रश्नकर्ता : तो दादा, इसमें आप लघुतम पद को क्यों बहुत महत्व देते हैं? दादाश्री : लेकिन लघुतम, तो हमेशा 'सेफसाइड'! जो लघुतम है वह तो हमेशा 'सेफसाइड' है, गुरुतम को भय रहता है। ‘लघुतम' कहा तो फिर हमें गिरने का क्या भय? जो ऊँचाई पर बैठे हों, उन्हें गिरने का भय होता है। जगत् में लघुतम भाव में कोई है ही नहीं न! जगत् गुरुतम भाव में रहता है। जो गुरुतम बना है, वह गिरता है। इसलिए हम तो लघुतम बनकर बैठे हैं। हमें जगत् के प्रति जो भाव है, वह लघुतम भाव है इसलिए हमें गिरने का कोई भय नहीं है, कुछ स्पर्श नहीं करता और न ही कुछ बाधा डालता है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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