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________________ [५] मान : गर्व : गारवता ३३७ दादाश्री : नहीं, नहीं। अभी ये सभी गारवता में है। क्या पेडर रोड से उठकर वहाँ सांताक्रूज़ में जाएँगे? दिवालिया निकल जाए तब जाएँगे। पैसे नहीं हो, कुछ भी नहीं हो, तब फिर कोई धकेलकर निकाले तब जाएगा। प्रश्नकर्ता : तो क्या लोग गारवता में से छूट ही नहीं सकते? दादाश्री : गारवता! ओहोहो, क्या गारवता में से छूटने के लिए लोग तैयार हैं? नहीं, गारवता में तो लोग खुश होकर यों पड़े रहते हैं हमेशा। प्रश्नकर्ता : लेकिन वहाँ सच्चा आनंद तो नहीं है न? दादाश्री : नहीं है, नहीं? फिर भी पूरा जगत् गारवता में पड़ा हुआ है। प्रश्नकर्ता : तो फिर यह गारवता इन इंसानों में से जाएगी कैसे? दादाश्री : दूसरा सुख देख ले तब जाएगी। प्रश्नकर्ता : दूसरा कोई अच्छा सुख मिले तो छूट जाएगी? दादाश्री : हाँ, तब छूट जाएगी। दूसरा सुख प्रतीति में बैठ जाए उसे, कभी देखा नहीं हो और प्रतीति बैठ जाए कि 'ये दादा कहते हैं वैसा ही है' तब वह जाती है। प्रश्नकर्ता : अपने महात्माओं में यह गारवता है न? दादाश्री : हाँ है, लेकिन गारवता को वे समझते हैं कि हमें गारवता का भूत है, फिर भी अच्छी लगती है गारवता! प्रश्नकर्ता : हम इस गारवता में न रहें और निकल जाएँ ऐसा कौन सा 'सॉल्यूशन' है? दादाश्री : 'सॉल्यूशन' तो, मन में तय करना चाहिए कि यह हो या वह हो, दोनों को एक समान कर दे न, तो 'सॉल्यूशन' निकलेगा। समान! खुद की नज़र में समान!
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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