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________________ [५] मान : गर्व : गारवता ३३३ चित्त की अशुद्धि होती गई वैसे-वैसे कीचड़ में घुसने लगा, संसार के कीचड़ में से अब कौन निकाले उसे?! और फिर गारवता! रस गारवता, रिद्धि गारवता और सिद्धि गारवता! तीन प्रकार की गारवता में फँसा है, फिर कौन निकाले इसे?! यह सब भी गारवता प्रश्नकर्ता : इस रस गारवता को ज़रा समझाइए न? दादाश्री : आम का रस, दूसरा रस, यह खीर वगैरह सभी। प्रश्नकर्ता : यानी सारे भोजन के स्वाद? दादाश्री : हाँ, स्वाद। वह सब रस गारवता कहलाती है। किसी इंसान को कुछ चीजें बहुत ही भाती है और अगर वह चीज़ उस दिन बननी हो न, तो सुबह से उसका चित्त उसी चीज़ में रहता है और दोपहर को एक बजे बन जाए, तब तक उसका चित्त उसी में रहता है। भोजन के बाद भी और उसके बाद भी उसका चित्त उसी में रहता है, वह रस गारवता। भैंस कीचड़ में पड़ी रहती है, वह रस गारवता। इन मनुष्यों की गारवता इन पाँच इन्द्रियों के रसों में है। वहाँ से फिर हिलता नहीं है। वह रस गारवता, इन्द्रियों की रस गारवता कहलाती है। फिर रिद्धि गारवता! 'मेरी दो मिलें हैं और ऐसा है और पाँच बेटे हैं, दो बेटियाँ हैं, बंगला है।' वह रिद्धि गारवता! रिद्धि अर्थात् पैसों से संबंधित, यह सारा ही भौतिक रिद्धि कहलाता है और दूसरी सिद्धि कहलाती है। प्रश्नकर्ता : सिद्धि में क्या होता है? दादाश्री : सिद्धि आध्यात्मिक होती है। प्रश्नकर्ता : सिद्धि का उदाहरण दीजिए न ! दादाश्री : कोई बहुत अहिंसक इंसान हो, वहाँ पर बकरी, बाघ वगैरह इकट्ठे हो जाएँ तब भी कोई परेशानी नहीं होती। या कोई दौड़ता
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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