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________________ [५] मान : गर्व : गारवता पुरुष और ज्ञानी बार-बार कहते रहते हैं लेकिन कान हिलाकर वापस फ्रिज में बैठ जाते हैं ! ३३१ सत् पुरुष ऐसी गारवता में नहीं रहते। वे किसी जगह पर फ्रिज की तरह नहीं बैठे रहते। आप फ्रिज में बिठाओ तब भी बाहर निकल जाते हैं और गर्मी में बिठाओ तब भी वे बाहर निकल जाते हैं । उनमें ऐसी गारवता नहीं होती जबकि जगत् के लोगों को तो, वे यदि संसार में घुस जाएँ न, तब जो गारवता महसूस होती है न, तो वे व्याख्यान सुनने भी नहीं जाते और पूरा दिन गारवता में ही रहते हैं । उसी ठंडक में और ठंडक में, वह गारवता कहलाती हैं । संसारी लोग इस गारवता में पड़े हैं और भैंस उस गारवता में पड़ी रहती है । पाँच इन्द्रियों के सुख, वही लोगों की गारवता ! बस, मस्ती में ! यानी पूरा जगत् गारवता में ही फँसा है। उस भैंस को पता नहीं है कि सूर्यनारायण अस्त हुए बिना रहेंगे नहीं और रात को फिर दो बजे घर जाना पड़ेगा। तो इसके बजाय सीधी तरह से उठ जा न ! यह खाना रख रहा है तो उठ न तो तेरी इज़्ज़त रहेगी और मालिक की भी इज़्ज़त रहेगी लेकिन फिर भी नहीं उठती। रात को दस बजे तो जाना ही पड़ेगा न, फिर ? तब फिर जब वह ठंडा लगने लगता है, तब वापस ठंड लगने लगती है । तब फिर गड्ढ़े में से बाहर निकल जाती है। जब तक वह अंदर से नहीं हिले तब तक, उस टाइम को गारवतापद कहा है। अभी गर्मी के ताप में ज़रा बैचेनी हो और दो-तीन डिश आइस्क्रीम खाई, वह गारवता । देखो गारवता ! भैंस की गारवता कीचड़ वाली है और इंसानों की गारवता यह है। भैंस को तो कुछ जगह पर ही गारवता होती है लेकिन इंसानों को तो स्त्री की गारवता, एयर कंडिशनर की गारवता ! और बेटे का बाप, तो मन में मुस्कुराता रहता है कि, 'तीन बेटे हैं, तो तीन बहुएँ आएँगी। तीन बेटों के लिए तीन मकान बनवाने हैं ।' ऐसी सब गारवता खड़ी होती है। जिस तरह बदबूदार गड्ढ़े में भैंस बैठी रहती है, उसी तरह पूरी दुनिया गारवता में ही पड़ी हुई है। गंध में, निरे विषयों की गंध
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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