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________________ ३१० आप्तवाणी-९ सभी संत बुरे होते हैं, ऐसा नहीं है। कई संत अच्छे भी होते हैं। अच्छे यानी कि जिन्हें 'बाप जी, बाप जी' करो तो खुश! बाकी पैसों की नहीं पड़ी होती, विषय की नहीं पड़ी होती। 'बाप जी' कहो तो खुश! लेकिन वे मन में मान बैठते हैं कि 'अब हममें कोई द्वंद्व नहीं रहा।' द्वंद्वातीत बन बैठे हैं न?! अभी इस एक बात से तो पानी-पानी हो जाओगे, एक ही अक्षर में। तो फिर जब दूसरे अक्षर आएँगे तब क्या होगा?! एक अक्षर में तो फट जाते हो। सौ मन दुध हो न, वह पाँच सेर-दस सेर नमक तो यों ही खा जाता है, तब भी नहीं फटता। जबकि यह तो एक ही अक्षर में फट जाता है। निर्मानी : निअहंकारी : निर्मोही अरे, आजकल तो कई साधु निर्मानी होकर घूमते हैं। वह नहीं चलेगा। निर्मानी देखे हैं क्या आपने? निर्मानी अर्थात् जो निअहंकारी कहलाते हैं न? प्रश्नकर्ता : हाँ, निर्सहंकारी। दादाश्री : अरे, ऐसा बोलना मत! निर्मानी में निर्मानी अहंकार होता है, 'मैं निर्मानी हूँ' ऐसा अहंकार होता है और मानी लोगों में मानी अहंकार होता है। मानी का अहंकार अच्छा है लेकिन निर्मानी का अहंकार तो कौन से जन्म में धोओगे? निर्मानीपना तो सूक्ष्म अहंकार है, एकबार घुसने के बाद फिर वह निकलता नहीं है कभी भी। 'मैं निर्मानी हूँ, मैं निर्मानी हूँ। हम निर्मानी हैं' कहेंगे। यों निर्मानी बन बैठा है। उसके पीछे सूक्ष्म अहंकार है। इसके बजाय तो स्थूल अच्छा कि लोग कह देते हैं कि 'अरे, आपका इतना पावर है, इसलिए यह छाती फुलाकर घूम रहे हो क्या?' ऐसा कहते हैं या नहीं? जबकि इसे तो कोई कहनेवाला ही नहीं मिलता न। कोई डाँटनेवाला ही नहीं मिलता न! वह फिर बढ़ता ही जाता है दिनोंदिन इसलिए मुझे मुँह पर कहना पड़ता है कि 'ज़रा समझो, नहीं तो भटक मरोगे। निअहंकारी बनना पड़ेगा। निर्मानीपना नहीं चलेगा।' आप समझ गए न, कि निर्मानी क्या है ?
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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