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________________ ३०४ आप्तवाणी-९ चाहिए, नहीं तो ढीठ कहलाएँगे। स्वमानशील तो होना ही चाहिए न! अज्ञानी में भी इतना तो होना ही चाहिए। इतनी 'बाउन्ड्री' तो चाहिए ही न! 'बाउन्ड्री' से बाहर तो कैसे चलेगा?! स्वमान अर्थात् अपमान नहीं हो, उसके लिए रक्षण करना। स्वमान, तो बहुत बड़ी चीज़ है, अज्ञान दशा में सद्गुण की ‘लिमिट' है ! स्वमान की तो हमने बहुत प्रशंसा की है इस वजह से कि यह अज्ञान दशा में सद्गुण की ‘लिमिट' है! अज्ञान दशा में सद्गुण होते हैं न? उनकी ‘लिमिट' है यह! प्रश्नकर्ता : स्वमान क्षम्य है या नहीं? दादाश्री : यह 'ज्ञान' लिया हो न, तो स्वमान क्षम्य है। नहीं तो स्वमान रखना ही चाहिए। अज्ञान दशा में भी स्वमान तो रखना ही चाहिए न! स्वमान नहीं होगा तो बेशर्म हो जाएगा फिर। बेशर्म हो जाएगा तो 'बाउन्ड्री' चूक जाएगा। प्रश्नकर्ता : लेकिन स्वमान में अहम् का अंश है या नहीं? दादाश्री : हाँ, वह अहम् तो है ही लेकिन फिर भी बेशर्म नहीं हो जाता। स्वमान के कारण 'बाउन्ड्री' में रहेगा, 'बाउन्ड्री' नहीं चूकेगा वह कभी भी इसलिए अज्ञान दशा में भी स्वमान की ज़रूरत है। प्रश्नकर्ता : अब हर एक का खुद का स्वमान तो होता है। अतः हमें अपना स्वमान तो रखना चाहिए न? दादाश्री : यह 'ज्ञान' लिया, अब स्वमान किसलिए रखना है? अब स्वमान वगैरह कुछ नहीं है। प्रश्नकर्ता : लेकिन कभी परिस्थितिवश कुछ ऐसी घटना हो जाए, तब हमें अपना स्वमान रखना चाहिए न? दादाश्री : लेकिन स्वमान और हमारा लेना-देना नहीं है। मान और स्वमान सभी गया। ऐसा है, जिसका 'स्व' बदला हुआ नहीं हो, उसे स्वमान रखना है। यह तो, 'स्व' ही बदल गया, फिर वहाँ पर क्या
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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