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________________ आप्तवाणी - ९ 'ग्रेज्युएट' है उतना ही । उसकी उतनी योग्यता है, इसलिए उसे छेड़ना नहीं चाहिए । स्वमान भंग नहीं करना चाहिए किसी का । ३०२ और मान क्या है ? कि उसके पास 'डिग्री' या 'क्वॉलिटी' नहीं है, वह नहीं देखना है, और गुण की बात तो कहाँ गई लेकिन 'इगो विथ रिच मटीरियल्स,' वह मान है। तीन हज़ार की घड़ी है, चश्मा सोने की फ्रेमवाला है, अच्छा लोंग कोट पहना है, यह सारा मान ! प्रश्नकर्ता : 'इगो' का घायल होना और स्वमान घायल होना, उन दोनों में फर्क है क्या ? दादाश्री : बहुत ही ! स्वमान घायल होगा तब तो सामनेवाला व्यक्ति बदला लेगा । प्रश्नकर्ता: और 'इगो' घायल हुआ तो बदला नहीं लेता ? दादाश्री : नहीं, कुछ भी नहीं । 'इगो' में हर्ज नहीं है । लेकिन धनवान लोगों में 'इगो' होता ही नहीं है न! 'इगो' हमेशा सिर्फ गरीबों में ही होता है। हम कहें न, 'चल नालायक' तब भी कुछ असर नहीं होता, वह कहलाता है 'इगो ।' फिर भी सिर्फ ऐसा ही नहीं है । 'इगो' पर असर हो भी सकता है और नहीं भी । इगो रिएक्ट कर भी सकता है, उस समय काट भी सकता है और शायद असर न भी हो । इन धनवानों में सिर्फ 'इगो' अकेला ही नहीं होता। प्रश्नकर्ता : तो धनवानों में क्या होता है ? दादाश्री : धनवानों में मान होता है, अभिमान होता है, स्वमान होता है, ऐसा सब तरह- तरह का होता है । उनमें 'इगो' विथ (के साथ) बहुत कुछ होता है जबकि इन गरीबों में 'इगो' विथ (के साथ) कुछ भी नहीं होता बेचारों के पास । प्रश्नकर्ता : किसी व्यक्ति ने कोई अच्छा कार्य किया हो और उसका अभिमान करे और किसी व्यक्ति को नीचे गिराने का अभिमान करे तो ? दादाश्री : वह सब अभिमान नहीं माना जाता ।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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