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________________ [५] मान : गर्व : गारवता इज़ बट नैचुरल' हो गया । इसीलिए मैं लोगों से कहता हूँ कि नकल करने जैसा नहीं है यह । 'नैचुरल' है, फिर इसमें तू क्या करेगा ? अब मेरे पास आ, मैं तुझे रास्ता दिखाऊँगा । मुझे रास्ता मिल गया है। बाकी, मैं जिस रास्ते से गया हूँ, उस रास्ते से तू करने गया तो मारा जाएगा क्योंकि मेरा तो पाव सेर के बदले सवा सेर हुआ तो मुझसे सहन नहीं हो रहा था। वे दिन कैसे निकाले वह तो मैं ही जानता हूँ । २९९ प्रश्नकर्ता : वह कहा है न, 'देहाभिमान था पाव सेर, विद्या पढ़ने से बढ़ा सेर और गुरु बना तब मन ( चालीस किलो) में गया।' अब उसमें से शून्य पर किस तरह आया जाए, वही महत्वपूर्ण है । दादाश्री : अब इस 'ज्ञान' के बाद आपका पुरुषार्थ दिन-रात किस तरफ जा रहा है ? । शून्य की ओर जा रहा है। पहले क्या होता था ? कि मन से दो मन होता था, उस तरफ जाता था । अब शून्य की ओर जा रहे हो। उसके लिए अगर हम ऐसा कहें कि 'अब क्या उपाय है ?' फिर भी उससे कुछ नहीं होगा। यानी अभी जो है, वह पद्धतिपूर्वक ही है । शून्य की ओर जा रहा है और वह हो ही जाएगा ! स्वरूप ज्ञान के बाद... इस 'ज्ञान' के बाद आपमें अब अहंकार है ही नहीं क्योंकि अहंकार किसे कहते हैं ? ‘मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा तय करना, वह है अहंकार! और आपको ‘मैं चंदूभाई हूँ' उस ज्ञान पर शंका हुई । 'मैं चंदूभाई नहीं हूँ' और 'मैं तो शुद्धात्मा हूँ, ' इसलिए अब आपमें अहंकार है ही नहीं। प्रश्नकर्ता : अहंकार अर्थात् ' मैं चंदूभाई हूँ' उस भाग को ही कह रहे हैं न? दादाश्री : हाँ, वही अहंकार कहलाता है। प्रश्नकर्ता : वह अहंकार भाग तो निकल गया है लेकिन क्या अब हमारा अभिमान रह गया है ? दादाश्री : हाँ, अभिमान में हर्ज नहीं है। अभिमान निकाली चीज़
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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