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________________ आप्तवाणी - ९ तरह से दिखाता है। वहाँ पर अंदर अभिमान बरतता है। मान की खातिर खुद की चीजें सामने वाले को दिखाना अभिमान कहलाता है । क्यों दिखाता है ? मान की खातिर । फिर मान से भी आगे जाता है, वह अभिमान में भी सीधा नहीं रहता । फिर कुदरत उसे मार-मारकर रास्ते पर ला देती है। इसलिए अगर खुद के पास दो-चार गाड़ियाँ हों, फिर भी उसका अहंकार नहीं करना चाहिए। उसका अभिमान नहीं करना चाहिए। अभिमान किया की जाने की तैयारी हुई। नम्रता रखनी चाहिए । जैसे-जैसे हमारे पास विशेष सांसारिक साधन आते जाएँ न, वैसे-वैसे नम्रता आनी चाहिए । २९४ फिर कहेगा, ‘ये मेरे चार बेटे, यह मेरा बेटा सी.ए है और मुझे ऐसा है वगैरह, वगैरह।' वह सब अभिमान । 'मैं गोरा हूँ, मैं मोटा हूँ' ऐसे जो कुछ कहता है, वह सब अभिमान कहलाता है । ये सब साँवले हैं और खुद गोरा हो तो उस गोरेपन का उसे अभिमान है । रूप का मद होता है या नहीं होता ? प्रश्नकर्ता : होता है । दादाश्री : खुद की पत्नी बहुत सुंदर हो, तो खुद को उसका मद रहता है कि ‘मेरी पत्नी जैसी तो किसी की पत्नी नहीं है।' ऐसा होता है या नहीं होता ? प्रश्नकर्ता : होता है। दादाश्री : अब यह रूप तो रहनेवाला है नहीं । इस रूप को कुरूप होने में देर नहीं लगती। अगर 'चेचक' हो जाए तो घड़ीभर में ही कैसा रूप निकल आएगा उसका ? 'चेचक' हो जाए तो रूप रहेगा ? चाहे कितना भी सुंदर हो, फिर भी ? क्या अपने हाथ में है यह सारी सत्ता ? इसलिए उसका अहंकार नहीं करना चाहिए । 'मेरे जैसा सुंदर कोई नहीं है' यह अभिमान में गया । इसलिए 'मैं गोरा हूँ' ऐसा जो बोलते हैं, वह अहंकार नहीं है। लोग तो अहंकार को समझते ही नहीं जबकि अभिमानी तो तुरंत पहचाना जाता है ।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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