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________________ २९० आप्तवाणी-९ कुछ खत्म हो जाए, तब। तो किस आधार पर जीए? वह 'हम' कि 'हमारे दादा जी ऐसे थे और वैसे थे।' शुरू हो जाता है फिर 'हम'। जब कहीं कोई भी चीज़ नहीं रहे, तब 'हम' का जन्म होता है! और अहंकार तो कौन सी परिस्थिति में खड़ा हुआ, वह परिस्थिति भी होती है। अब अहंकार कब कम होता है? कोई लुटेरा रास्ते में कपड़े निकालकर, अच्छी तरह से मारे तो सारा अहंकार कम हो जाता है। प्रश्नकर्ता : वह बात अज्ञानी के लिए है? दादाश्री : वह तो अज्ञानी की बात है ! ज्ञान में तो अहंकार होता ही नहीं है न! अहंकारी में वह अहंकार कम नहीं हो पाता। उसे ऐसे ही साधन मिल आते हैं जिनसे अहंकार बढ़े लेकिन कम होने के साधनों में तो, ऐसे कोई लुटेरे मिल जाएँ और अच्छे से मार पड़े न, तब अहंकार उतर जाता है। या फिर दस लाख रुपये की जायदाद हो और पंद्रह लाख रुपये का नुकसान हो जाए तो अहंकार उतर जाता है! प्रश्नकर्ता : लेकिन वह दूसरे कोने में घुस जाता है न, वापस? दादाश्री : नहीं, कम हो जाता है, बढ़ता नहीं। अहंकार और ममता, वह तो सहज रूप से प्राप्त हो चुकी चीजें हैं, वे उत्पन्न की हुई चीज़ नहीं है। जबकि 'हम' तो खड़ी की गई चीज़ है। अहंकार, मान, अभिमान.... एक नहीं हैं प्रश्नकर्ता : अहंकार, मान और अभिमान, इनमें क्या फर्क है? दादाश्री : अहंकार के विस्तृत स्वरूप को मान कहते हैं और जो ममता सहित होता है, उसे अभिमान कहते हैं। कुछ भी, किंचित् मात्र ममता जैसे कि, 'यह मेरी मोटर है' ऐसा कहे तो इसे दिखाने के पीछे क्या होता है? अभिमान। उसके बच्चे जरा गोरे हों तो हमें दिखाता है, 'देखो, मेरे चारों बच्चे दिखाता हूँ।' वह है ममता और अभिमान ! यानी जहाँ अभिमान होता है, वहाँ हमें ऐसा सब बताता रहता है जबकि मान का अर्थ है अहंकार का विस्तृत स्वरूप, जो बहुवचन हो चुका है।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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