SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 324
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [५] मान : गर्व : गारवता २७३ अपमान का प्रेमी कोई व्यक्ति कुछ अपमान करे, उस समय वह अपमान करनेवाला व्यक्ति, जब आपके कर्मों के उदय हों, तब वह निमित्त मिलता है। आपके कर्म का उदय आपको भुगतना है, उसमें उसका क्या दोष बेचारे का? अतः करके देखना यह प्रयोग इस तरह। “अपमान करे, शायद गालियाँ भी दे, फिर भी इतना मानना कि 'अपने कर्म का उदय है।' या फिर 'हम रास्ते पर जा रहे हों और पहाड़ पर से लुढ़कते-लुढ़कते इतना बड़ा पत्थर आकर गिरे तो हम क्या करेंगे उस समय?" प्रश्नकर्ता : भाग्य में होगा तो लगेगा ही। दादाश्री : पहाड़ पर से पत्थर लुढ़कते-लुढ़कते अपने सिर पर गिरा और उससे लगी, तो हम देख लेते हैं कि कोई नहीं है इसलिए उसमें किसी पर कषाय नहीं करते और यदि कोई व्यक्ति इतना छोटा सा कंकड़ मारे तो कषाय करते हैं। इसका क्या कारण है ? अपनी समझ में फर्क है। वह कंकड़ मारनेवाला भी पहाड़ है और पत्थर लुढ़का, वह भी पहाड़ है। उसमें शुद्ध चेतन नहीं है, वह मिश्र चेतन है। यह भी पत्थर ही है, पहाड़ ही है बेचारा। इसलिए यदि इतना करोगे तो बहुत हो गया। ऐसा है जब कोई अपमान कर दे, तब अपमान का प्रेमी नहीं बन सकता न? जितना मान का प्रेमी है, उतना अपमान का प्रेमी नहीं बन सकता, है न? जितना फायदे का प्रेमी है, उतना नुकसान का प्रेमी नहीं बन सकता, है न? गणतर (सूझ-बूझ) की हेल्प यदि कोई आपका अपमान करे तो आप क्या करोगे? मेरा कहना है कि जहाँ सत्ता नहीं है, वहाँ कह देना, ‘पसंद है'। सत्ता नहीं हो तब क्या करोगे? वर्ना अगर 'पसंद नहीं है' कहेंगे, तो वह कचोटता रहेगा अंदर। पूरी रात कचोटता रहेगा, है न! आपको कभी कचोटा है ? प्रश्नकर्ता : पूरी रात कचोटता रहता है, झटके लगते रहते हैं।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy