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________________ [४] ममता : लालच २५१ पुरुषार्थ के चली जाए। ज़बरदस्त पुरुषार्थ करना पड़ेगा। फिर बीस शक्तियाँ उत्पन्न हुई, तो बीस शक्तियाँ वापस से खर्च कर ली तो चालीस की शक्ति उत्पन्न होगी, फायदा होगा। ऐसे करते-करते शक्ति बहुत बढ़ जाएगी। प्रश्नकर्ता : यदि वह खुद भावना करे कि आज्ञा पालन करना ही है तो उसका परिणाम आएगा या नहीं? दादाश्री : आज्ञा का पालन तो करना ही चाहिए न! और समभाव से निकाल करना ही चाहिए। फिर सभी घर वाले कहेंगे, 'नहीं, दादाजी, हमारी तरफ से कोई शिकायत नहीं है।' महीने में ही परिणाम आए बगैर रहेगा क्या? सच हमेशा परिणाम लाता है और झूठ भी परिणामवाला होता है। इसलिए हम तो कहते हैं कि इन घरवालों का पहले निकाल करो, रास्ता निकालो। परिणाम लाएगा तभी उसे लाभ है न! कुछ परिणाम आएगा न, अर्थात् जब दस परिणाम प्राप्त होने तक पहुँचे तब बीस की शक्ति उत्पन्न होगी। फिर वापस जब बीस परिणाम प्राप्त होने तक पहुँच जाएँगे तो चालीस की शक्ति उत्पन्न होगी। फिर उसे खुद को मालूम हो जाएगा न कि मेरी यह शक्ति बढ़ी है ? वर्ना यह तो 'डिज़ोल्व' हो चुकी शक्ति है। अभी तक तो वह एक मिनट भी आज्ञा में नहीं रहता है। आज्ञा में रहा होता तो घर के लोगों को दुःख होता? समभाव से निकाल करके सब का प्रेम जीत लेता! यह तो आज्ञा में रहता ही नहीं है, आज्ञा क्या है वह जानता ही नहीं। सिर्फ बुद्धि से जानता है या शब्दों से जानता है, लेकिन भावार्थ नहीं जानता। वर्ना आज्ञा में रहने वाले को थोड़ा बहुत मतभेद रहता है, बाकी, झंझट नहीं होती। घर के लोग उससे तंग नहीं हो जाते। प्रश्नकर्ता : यानी उपाय में तो शुद्धात्मा में रहना है, प्रतिक्रमण करना है, चीज़ों से दूर रहना है?
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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