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________________ २४८ आप्तवाणी-९ सभी लोगों के साथ 'रेग्युलर' हो जाना चाहिए। 'समभाव से निकाल' करने की आज्ञा का पालन करने से 'रेग्युलर' हो जाएगा न? और फिर 'रियल-रिलेटिव' देखना चाहिए। __ लेकिन फिर भी हम पूछकर देखें कि एक भी दिन आज्ञापूर्वक देखा है क्या? यदि वह आज्ञापूर्वक देखेगा तो ऐसा परिणाम ही नहीं आएगा न? देखने का परिणाम तुरंत आता है। यह तो सब बुद्धि का, कुछ भी 'हेल्प' नहीं करता। वे बातें भी सारी बुद्धि की करेंगे। प्रश्नकर्ता : यानी बुद्धि से ही सारी आज्ञाएँ 'एडजस्ट' करते हैं ? दादाश्री : हाँ, ज्ञान से नहीं। बुद्धि से 'एडजस्ट' करते हैं। प्रश्नकर्ता : तो फिर उसका परिणाम कैसा आता है ? दादाश्री : कुछ भी नहीं। बुद्धि से तो नाश हो जाता है सारा! बुद्धि विनाशी, और उसके द्वारा यह जो कुछ भी हुआ वह सब विनाशी होता है। प्रश्नकर्ता : नहीं, लेकिन फिर 'ज्ञान' से किस प्रकार से होता है, वह? ज्ञान से पालन और बुद्धि से आज्ञा पालन, उसमें फर्क क्या है? दादाश्री : ज्ञान से आज्ञा पालन करे तो सभी जगह परिणामित हो जाता है और बुद्धि से आज्ञा पालन करे तो कुछ भी परिणामित नहीं होता। प्रश्नकर्ता : परिणामित हो जाए, वहाँ पर क्या होता है ? दादाश्री : समभाव से निकाल होता है। उससे सबकुछ ठीक हो जाता है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् परिणाम बाहर आता है ? दादाश्री : ज़रूर आता है 'पास' हो ही जाता है। यह तो, यदि हम देखे न, तो कभी भी कुछ ठीक नहीं हुआ होता है। एक दिन भी नहीं, एक घंटे भी नहीं न!
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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