SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 261
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१० आप्तवाणी-९ वह सारी फैलाई हुई ममता है लेकिन 'जाते समय' तो ये लोग कान काट लेते हैं और ज़ेवर निकाल लेते हैं। अतः ममता की बाउन्ड्री होनी चाहिए। हर एक चीज़ की बाउन्ड्री होनी चाहिए न? ममता की बाउन्ड्री नहीं होनी चाहिए? प्रश्नकर्ता : अतः फैलाई हुई ममता वाली चीज़ों पर राग-द्वेष नहीं रखना, ऐसा हुआ न? दादाश्री : इन इन्श्योरेन्सवालों पर जैसे कोई असर नहीं होता, उस तरह से रहना चाहिए। रखो ममता लेकिन... ममता रखने पर जो चीज़ अपने साथ आए, उतनी ही ममता करनी चाहिए या फिर ऐसी कोई चीज़ है कि जिसका हमारे जाने के बाद अस्तित्व नहीं रहता? 'यह पैर मेरा, हाथ मेरा, नाक मेरा, कान मेरा, आँख मेरी, यह उँगली मेरी, दांत मेरे, बत्तीसों दांत मेरे।'- अरे, इस शरीर में तो बहुत चीजें हैं लेकिन अगर इतनी ही ममता रखे, तब भी बहुत हो गया। फिर कोई दखल ही नहीं रहेगी न! ममता को बाहर फैलाने की ज़रूरत नहीं है। फैली हुई ममता तो भूल से हो गई हैं इन लोगों से। यह नासमझी से खड़ा हुआ है। वर्ना बाहर ममता का विस्तार करना ही नहीं चाहिए। प्रश्नकर्ता : उसका अर्थ ऐसा हुआ कि इस शरीर तक की ही ममता रखनी चाहिए? दादाश्री : इस शरीर तक की ही, और वह ममता पूरी तरह से रखनी चाहिए। उसे खिलाना, पिलाना, इस ममता में बहुत सुख है लेकिन इस सुख को नहीं भोगते और 'यह घर मेरा, यह प्लॉट मेरा, यह फलाना मेरा, यह मेरी वाइफ!' अरे, कोई भी तेरा नहीं होगा। जिसे हम 'मेरा' कहते हैं वह अपने हाथ में नहीं आता। 'हम' परमानेन्ट हैं। विनाशी चीज़ों के साथ आपका मेल ही नहीं खाएगा न? इसका गुणाकार ही नहीं हो सकता।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy