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________________ आप्तवाणी - ९ पुस्तकें पढ़ता रहे तो उसे ऐसी सूझ पड़ती जाती है फिर । वर्ना, कॉमनसेन्स कहाँ से लाए? वह क्या रास्ते में पड़ी हुई चीज़ है ? सरलता से बढ़ता है कॉमनसेन्स प्रश्नकर्ता : सरलता से भी कॉमनसेन्स बढ़ता है न ? दादाश्री : हाँ, बहुत बढ़ता है । सरलता से धोखा भी खाता है, लेकिन कॉमनसेन्स बहुत बढ़ जाता है। ज़्यादा पैसा लेकर कोई हमें ठग लेता है, लेकिन उसके बदले में हमारा कॉमनसेन्स बढ़ता है । इस दुनिया में जिसका बदला न मिले, ऐसी कोई चीज़ होती ही नहीं । कुछ न कुछ बदला मिल ही जाता है । १८२ प्रश्नकर्ता : लेकिन कॉमनसेन्स का मतलब तो एवरीव्हेर एप्लिकेबल है न? तो फिर धोखा कैसे खा जाता है ? दादाश्री : सरलता है, इसलिए धोखा खाता है न ! दो-तीन जगहों पर धोखा नहीं खाता, लेकिन एक-दो जगह पर धोखा खा जाता है। पर जब धोखा खाता है, उस समय उसका कॉमनसेन्स खिलता है, और समझ में आता है कि ऐसे संयोगों में धोखा खा जाते हैं, इसलिए उसका कॉमनसेन्स बढ़ता जाता है। सोल्यूशन कॉमनसेन्स से कॉमनसेन्स तो बहुत बड़ी चीज़ है । एक व्यक्ति आकर एक साहब से उल्टा-सीधा कहने लगा। कॉमनसेन्स के कारण उन साहब पर ज़रा सा भी असर नहीं हुआ। देखो कॉमनसेन्स था, इसलिए! इससे हमें कॉमनसेन्स का उदाहरण देखने को मिला कि 'इन साहब ने कॉमनसेन्स का उपयोग किया।' दूसरा कोई व्यक्ति तो वहाँ पर डिस्करेज ही हो जाता न, यों ही ! ज़बरदस्त डिप्रेशन आ जाता लेकिन मैंने तो उनमें डिप्रेशन नहीं देखा। मैं यही देख रहा था कि डिप्रेशन आता है या नहीं ? वह व्यक्ति न जाने क्या कुछ कह गया, तब भी डिप्रेशन नहीं आया। अतः इन सब से मैं क्या कहता हूँ ? कि कॉमनसेन्स से प्रश्न हल
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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