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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध यानी कल अपना किसी ने अपमान किया हो और आज उस व्यक्ति को देखें तो वह नया ही लगना चाहिए और वह नया ही होता है लेकिन अगर ऐसा नहीं दिखता तो उसमें आपसे भूल हो रही है । आप दूसरे ही रूप में देख रहे हो लेकिन वह नया ही होता है । एक कर्म पूरा हो गया, इसलिए अब वह दूसरे ही कर्म में होता है । वह दूसरे कर्म में होता है या उसी कर्म में होता है ? I १६७ प्रश्नकर्ता: दूसरे कर्म में होता है । दादाश्री : और आप उसी कर्म में रहते हो, तो कितना बुरा कहलाएगा ?! आपसे क्या कभी ऐसी भूल होती है ? नोंध रखते हो क्या ? प्रश्नकर्ता : पहले तो नोंध लेने की आदत थी, अब नहीं लेते । दादाश्री : नहीं लेते न ? बेकार ही पोथियाँ बिगाड़नी। लोग तो न बही रखते हैं । इन्हें एक व्यक्ति ने कहा कि 'आप प्रकृति के नचाने से नाचते हो। आप लट्टू हो।' लेकिन तब भी हमने नोंध नहीं रखी। उसके बाद मैंने उसे डाँटा। मैंने कहा, 'अरे, इन्हें ऐसा तो कहा जाता होगा ? कैसा आदमी है तू?' लेकिन उसकी नोंध नहीं रखी। हम नोंध नहीं रखते । हम उसके मुँह पर ज़रूर कह देते हैं, लेकिन फिर नोंध नहीं रखते । नोंध रखना तो भयंकर गुनाह है । यानी किसी की दाद नहीं, फरियाद नहीं । कुछ भी नहीं। कोई अपमान कर जाए तो आपको मुझे दाद - फरियाद नहीं करनी है। दादफरियाद बेकार गई। जो हुआ वही ठीक है, न्याय ही है न? प्रश्न ही खड़ा नहीं होता न? ऐसा है यह विज्ञान, साफ! नोंध लेने का आधार प्रश्नकर्ता : नोंध वास्तव में किस तरह से ली जाती है, उसका एक उदाहरण दीजिए न ! दादाश्री : यहाँ रास्ते पर आप जा रहे हों और कोई आपसे कहे
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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