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________________ १६२ आप्तवाणी-९ रखे बगैर रहते हैं? और मोक्ष में जाना हो तो नोंध छोड देनी पडेगी, नोंध की 'बुक' निकाल देनी पड़ेगी। हमारे जैसे भोले तो, नोंध लिखी तो लिखी और नहीं लिखी तो कोई बात नहीं। वह दुकान ही नहीं चाहिए। हमारे लोग दुकानों में नोंध ही नहीं रखते जबकि लोग तो नोंध बही रखते हैं न? ये लोग तो बहुत नोंध बही रखते हैं। एक थान चंदूभाई ले गए, एक थान चतुरभाई ले गए, वे नोंध लिखते हैं और शाम को वापस बहीखाते में लिख देते हैं, लेकिन नोंध तो रखते हैं। हम दुकान में एक किताब रखते हैं लेकिन अंदर लिखना भूल जाते हैं। इसलिए व्यापार नहीं होता। यानी नोंध संसार को रोशन करती है, लेकिन वह संसार में से निकलने नहीं देती। और हमें तो अब नोंध करने की झंझट ही नहीं है, किताब पकड़ने की ज़रूरत ही नहीं है। पेन पकड़कर लिखने की क्या ज़रूरत है ? तो हम भोले-भाले ही अच्छे कि नोंध नहीं रखते और कोई मेरी नोंध भी नहीं रखता इसलिए हम छूट जाते हैं, हल आ जाता है। नोंध ही नहीं और झंझट भी नहीं! बात पते की नहीं है? तो टूटे आधार संसार के प्रश्नकर्ता : पते की बात है लेकिन दादा, यह तो ऐसा होता है कि संसार में नोंध रखनी ही चाहिए, ऐसा शिक्षण मिला हुआ है। दादाश्री : उस शिक्षण की ज़रूरत है। संसार में रहना हो, तब तक उस शिक्षण की ज़रूरत है, लेकिन मोक्ष में जाना हो तो, ऐसा शिक्षण मिलना चाहिए कि ' नोंध नहीं रखनी चाहिए।' प्रश्नकर्ता : इस संसार में तो कहेंगे ' नोंध रखो। इसने क्या किया, उसने क्या किया, आपको क्या करना है !' दादाश्री : नोंध रखोगे, तो आप सच में संसारी कहलाओगे। और जब तक नोंध है, तब तक संसार आपको निकलने नहीं देगा। नोंध रखोगे तब तक निकल नहीं पाओगे। नोंध नहीं रखोगे तो संसार अस्त हो जाएगा!
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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