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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध १५१ ऐसी शंका? वहाँ ज्ञान हाज़िर इस 'ज्ञान' के बाद अब आप कोई काम करने जाओ न, तब अगर ऐसी शंका हुई कि 'दोष तो नहीं लगेगा?' उस समय आत्मा हाज़िर था इसलिए आपकी एक शंका खत्म हो गई। वर्ना ऐसी शंका किसे होती है ? इस जगत् में लोगों को ऐसी शंका होती है? किसलिए नहीं होती? आत्मा हाज़िर ही नहीं है वहाँ पर! शंका किसे होती है ? 'मैं कर्ता हूँ' ऐसी शंका किसे होती है? अतः जब आपको शंका हो तब समझना कि आत्मा हाज़िर था इसलिए वह शंका खत्म हो गई। प्रश्नकर्ता : जब तक ज्ञानज्योति जलती रहे, तभी शंका होती है। ज्ञानज्योति नहीं होगी तो शंका कहाँ से आएगी? दादाश्री : हाँ। गाड़ी के आगे प्रकाश हो तब पता चलता है कि जीव-जंतु गाड़ी से कुचले जा रहे हैं लेकिन अगर प्रकाश ही नहीं होगा तो? शंका ही नहीं होगी न! यह तो आपने 'ज्ञान' दिया इसलिए तन्मयाकार होता ही नहीं। फिर खुद के मन में ऐसा होता है कि 'मैं एकाकार हो गया होऊँगा?' लेकिन नहीं, वह शंका होती है और उसके लिए भगवान ने कहा है कि 'शंका होती है? इसका मतलब तू ज्ञान में ही है।' क्योंकि दूसरे किसी इंसान को शंका नहीं पड़ती कि 'मैं तन्मयाकार हो गया हूँ।' वे लोग तो तन्मयाकार हैं ही जबकि आपको तो यह 'ज्ञान' मिला है इसलिए आपको शंका होती है कि 'मैं तन्मयाकार हो गया होऊँगा या क्या?' वह शंका हुई! फिर भी भगवान कहते हैं, 'वह शंका हम माफ करते हैं।' कोई कहेगा, 'भगवान, माफ क्यों कर रहे हैं?' तब भगवान क्या कहते हैं? 'वह तन्मयाकार नहीं हुआ है, उसकी समझ में फर्क है।' वह तन्मयाकार नहीं हुआ है लेकिन यह तो सिर्फ शंका हो गई है। औरों को क्यों शंका नहीं होती? औरों को शंका होती है क्या? नहीं। उन लोगों को तो 'मैं अलग हूँ' ऐसा सोच में भी नहीं आया। अतः
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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