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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध है कि उन्हें प्राप्ति हो गई है तो मिक्स्चर करने की ज़रूरत नहीं है । एक के अंदर दूसरा मिक्स्चर करने से फायदा नहीं होगा । जिस प्रकार की दवाई आप पीते हों, वही पीते रहना अच्छा है। वापस दूसरा मिक्स्चर करेंगे तो बल्कि नई मुश्किलें खड़ी हो जाएँगी। तो मिक्स्चर क्यों करना है हमें? कृपालुदेव ने क्या कहा है कि, 'जिस रास्ते, जिससे अपना संसार मल चला जाए, उसी रास्ते का तू सेवन करना । ' तो उसका सेवन करना है क्योंकि हमें तो इतना ही देखना है न कि मल जाए? अपना और काम भी क्या है ? ! १४९ यानी जितने शंकाशील हैं न, उन्हें यह संसार छोड़ता नहीं है । जब तक किंचित् मात्र भी कोई भी संशय, संमोह या शंका हो, तब तक यह संसार उसे मुक्त नहीं करता । उसी से संसार बंधा हुआ है । शंका होने लगे तब आपका काम नहीं हो पाता । इसके बजाय अनपढ़ लोग अच्छे । ये सभी शास्त्रों के जानकार शंकाशील, संदेह में फँसे हुए हैं। इनके बजाय तो अपने ‘ज्ञान' लिए हुए किसी महात्मा को शंका उत्पन्न ही नहीं हुई क्योंकि ऐसे अधिक शास्त्र पढ़े होंगे तभी शंका होगी न ? अतः जो निःशंक हो जाता है, उसका आत्मा निरंतर परमानंद देता है । बाकी, यह जगत् शंका से ही फँसा हुआ है न! शायद ही कभी अपने 'ज्ञान' लिए हुए महात्मा को एक क्षण के लिए भी आत्मा संबंधी शंका हुई होगी ! ऐसा तो हुआ ही नहीं, सुना ही नहीं न! यहाँ तो शंका जैसी चीज़ ही नहीं सुनी। प्रश्नकर्ता : जिसने पहले कभी ऐसी चीज़ सुनी ही नहीं हो, उन्हें शंका नहीं होती, लेकिन जिसने सुनी हो, उसे ऐसा लगता है कि यह सच है या वह सच है ? दादाश्री : ऐसा है न, सुना हुआ हो, फिर भी शंका नहीं होती उसका क्या कारण है? यह 'ज्ञान' लेने के बाद उसे खुद को अंदर ऐसा अनुभव हो गया कि मेरा आत्मा कभी भी जाता ही नहीं, रात को दो बजे जब मैं जागता हूँ उससे पहले तो वह हाज़िर हो जाता है । तो ऐसा तो इस ‘वर्ल्ड' में किसी भी जगह पर हो सके, ऐसा है ही नहीं । आत्मा I
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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