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________________ से नि:शंक है। वहाँ पर शंका करनी है। खुद की उल्टी गाढ़ मान्यताओं पर शंका होने लगे तो उसे समकित होने की तैयारी माना जाएगा। आत्मा क्या होगा? कैसा होगा? उससे संबंधित शंका का जाना अति कठिन है। क्रोध-मान-माया-लोभ किसके गुण होंगे, वह किस तरह से समझ में आएगा? वह तो प्रत्यक्ष ज्ञानीपुरुष समझाएँ, तभी समझ में आ सकता है और तभी शंका से मुक्त हो सकता है। आत्मा कैसा होगा? क्या होगा? उसी सोच में जीवन बिताना है न कि बेडरूम में या सिनेमा व होटेलों में! तरह-तरह के संदेह कब जाएँगे? वीतराग और निर्भय हो जाएँगे तब। आत्मा पर शंका कौन करता है? मूल आत्मा को ऐसी शंका है ही नहीं। यह तो 'खुद' ही 'मूल आत्मा' पर शंका करता है। जो आत्मा संबंधी निःशंक हो जाए, उसे निरंतर मोक्ष ही है न! अभी तक जो ज्ञान लेकर घूमे, ज्ञान के जो-जो साधन अपनाए, उन सभी पर शंका हुई, तब से लेकर आत्मा के बारे में संपूर्ण निःशंकता नहीं हो जाए, तब तक की स्थिति को अध्यात्म में शंका कहा गया है। वह निःशंकता प्राप्त होने से निर्भय पद प्राप्त होता है! और जहाँ निर्भयता है, वहाँ सर्व संगों में भी असंगता! __ अक्रम विज्ञान की ग़ज़ब की बलिहारी है कि एक घंटे के अद्भुत ज्ञान प्रयोग से खुद हमेशा के लिए आत्मा के बारे में निःशंक हो जाता है। पुस्तक पढ़कर आत्मा से संबंधित शंका नहीं जाती है। उसके लिए तो प्रत्यक्ष ज्ञानी की ही आवश्यकता है। जिसने अधिक जाना, उसे अधिक शंकाएँ होती हैं। 'मैं कुछ भी नहीं जानता' ऐसा होते ही निःशंकता है। जिससे कषाय जाएँ, वह जाना हुआ सही है! जहाँ शंका, वहीं पर संताप। निरंतर निःशंकता, वही निशानी है आत्मा जानने की। शंका होना, वह एक प्रकार की जागृति है। यह मैंने किया या किसी ओर ने किया?' उस शंका का होना उच्च प्रकार की जागृति 19
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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