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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध प्रश्नकर्ता : और जितनी दुकानों पर घूमते जाते हैं, वैसे-वैसे नकली माल बढ़ता जाता है I १४७ दादाश्री : हाँ, बढ़ता जाता है और 'यहाँ से मिलेगा या वहाँ मिलेगा ?' ऐसे विकल्प खड़े होते रहते हैं । वह तो जब अंतिम दुकान मिल जाए तब निबेड़ा आता है और उसमें भी जब सभी बातों में संदेह चला जाए तब हल आता है । वह जाना हुआ तो शंका करवाता है शंका कब होती है ? बहुत पढ़ते रहे हों न, वह सारा आगे-आगे प्रति स्पंदन डालता रहता है । अतः मनुष्य वहाँ पर उलझ जाता है और उलझने से तो संदेह खड़े होने लगते हैं, शंका होने लगती है । वे शंकाएँ ही इस संसार से बाहर नहीं निकलने देतीं । बहुत काल से शास्त्र का परिचय हो, तब फिर आपको अंदर शंका खड़ी होती है। यानी कि जितना जानता है, वह तो बल्कि उतना ही अधिक खटकता है। उस जाने हुए को भगवान ने 'ओवरवाइज़पना' कहा है I आप वकील बन गए तो उस बारे में आपको ओवरवाइज़पना खटकता रहता है। 'वाइफ' चीनी लेने जाए और वह काले बाज़ार की चीनी ले रही हो, तो भी आपके मन में ऐसा होता है कि, 'यह मत करना, मत करना । ' यों यहाँ पर अगर वकील को कोई कार्य करना हो न, तो शंका रहती है कि, 'यह करूँगा तो मुझ पर वह कलम लागू हो जाएगी,' तब उसका उस स्टेशन पर जाना रह जाता है और वह कहीं और चला जाता है ! यह तो जो विशेष जान लिया है, उसका प्रभाव है ! उससे धक्के लगते रहते हैं। वह जान लिया है न, इसलिए। इसलिए हमने कहा है न, कि 'मैं कुछ भी नहीं जानता' ऐसा करके फ्रेक्चर कर दो न, सारा माल ! ये सब तो चूसे हुए गन्ने जैसे हैं। किसी प्रकार की मदद की ही नहीं है न! ये तो मन में मान बैठते हैं कि इसने यह 'हेल्प' की है लेकिन किसी प्रकार की 'हेल्प' नहीं की है। न तो चिंता खत्म हुई, न ही अहंकार घटा; न ही क्रोध - मान - माया - लोभ गए । अनादिकाल का पुराना
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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