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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध १४१ आत्मा को कुछ नहीं करना पड़ता। आत्मा की एक 'प्रज्ञा' नाम की शक्ति बाहर निकलती है। इसका काम क्या? दिन-रात 'यह' 'इसे' इसी तरफ मोड़ती रहती है। वह पूरे दिन उसे इस ओर मोक्ष में ले जाने के लिए ही मेहनत करती रहती है और 'अज्ञा' नाम की शक्ति जिसे बुद्धि कहा जाता है वह रात-दिन संसार में खींच ले जाना चाहती है। इन दोनों का संघर्षण रहता है अंदर। इन दोनों का संघर्षण निरंतर चलता ही रहता है। 'अज्ञा'-वह बुद्धि है और 'प्रज्ञा'-वह मूल वस्तु है। 'प्रज्ञा' हमेशा ही 'आपको' अंदर चेतावनी देती है और मोक्ष की तरफ ले जाना चाहती है। यह प्रज्ञाशक्ति उत्पन्न हुई है। स्थितप्रज्ञ दशा की तुलना में प्रज्ञाशक्ति बहुत उच्च है। स्थितप्रज्ञ दशा में तो व्यवहार में निपुण होता है। दूसरा, लोगों की निंदा वगैरह ऐसी चीज़ नहीं होती। वह अपने आपको स्थितप्रज्ञ मान सकता है क्योंकि उसकी बुद्धि स्थिर हो चुकी है लेकिन यह प्रज्ञा, वह तो मोक्ष में ले जाती है। स्थितप्रज्ञ को मोक्ष में जाने के लिए अभी आगे बहुत लंबा मार्ग तय करना पड़ेगा। ___आत्मा से संबंधित शंका जाए तो समझना की मोक्ष हो गया। 'आत्मा यही है' ऐसा अपने मन में विश्वास हो गया कि सब काम हो गया! निःशंकता - निर्भयता - असंगता - मोक्ष वर्ना, जहाँ शंका है, वहाँ दुःख है। और 'मैं शुद्धात्मा,' कहते ही निःशंक हो गया, उससे दुःख चला जाएगा। अत: निःशंक हो जाएगा तभी काम होगा। निःशंक होना, वही मोक्ष है। बाद में फिर कभी भी शंका नहीं हो, उसी को मोक्ष कहते हैं। अत: यहाँ पर सभी कुछ पूछा जा सकता है। शंका निकालने के लिए ही तो ये 'ज्ञानीपुरुष' हैं। अंदर सभी प्रकार की शंकाएँ हों न, तब भी 'ज्ञानीपुरुष' हमें निःशंक बना देते हैं। नि:शंकता से निर्भयता उत्पन्न होती है और निर्भयता से असंगता उत्पन्न होती है। असंगता ही मोक्ष कहलाता है। कृपालुदेव ने तो क्या कहा है ? 'निःशंकता से निर्भयता उत्पन्न होती है और उससे नि:संगता प्राप्त होती है।'
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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