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________________ १३७ [२] उद्वेग : शंका : नोंध ऐसे मनुष्यत्व नहीं खो सकते अब ‘आत्मा ऐसा होगा या वैसा होगा, ऐसा होगा या वैसा होगा' कोई ऐसी विचार श्रेणी में आ जाए, उसे भगवान ने सम्यक्त्व मोहनीय कहा है। ऐसी विचार श्रेणी में कोई आया ही नहीं है अभी तक। ऐसी मोहनीय भी जागृत नहीं हुई है। अभी तो यह, मिथ्यात्व मोहनीय, मिश्र मोहनीय ही है अभी तक। सम्यक्त्व मोहनीय जागृत हो गई होती तो भगवान उसे महान अधिपति कहते। यह तो एक 'प्लॉट' होता है या एक मकान होता है, इतना ही अधिपति होता है, उसमें तो खुद अपने आपको कितना ही धन्य मानकर पेट पर हाथ फेरकर 'होइया' करके सो जाता है! अरे, क्या देखकर सो जाता है ?! अनंत जन्मों से ऐसे 'होइया' करके सो गया! शर्म नहीं आती?! और वापस पेट पर हाथ फेरकर 'होइया' कहेगा। अरे, क्या देखकर सो जाता है ?! यह जगत् क्या सोने योग्य है ? मनुष्यजन्म मिला, और सोया जाता होगा?! मनुष्यजन्म मिला, अच्छा योग मिला, उच्च धर्म पुस्तकें पढ़ने का योग मिला, उच्च आराधना मिली, वीतराग के दर्शन हुए, और तू 'होइया' करके सो जाता है ?! और फिर 'बेडरूम' बनाया है ?! अरे, 'बेडरूम' नहीं बनाते! वह तो एक रुम हो तो सबको साथ में सो जाना है और अलग बेडरूम तो संसारी जंजाल! यह तो बेडरूम' बनाकर पूरी रात संसार की जंजाल में पड़ा रहता है। आत्मा की बात तो कहाँ से याद आए? बेडरूम में आत्मा की बात याद आती होगी?! मैंने एक व्यक्ति से पूछा, 'क्या देखकर सो जाते हो?!' तब उसने कहा, 'साढ़े दस बजे हैं, तो अब नहीं सोऊँ?' 'अरे, कुछ कमाए बगैर सो गए? आज क्या कमाया वह कहो मुझे।' तब उसने कहा, 'मैं कुछ तो करता हूँ। वह तो कुछ भी नहीं करते!' और फिर उस दूसरे वाले से पूछा, तब उसने भी ऐसा ही कहा कि, 'वह नहीं करता है, यह नहीं करता।' सभी ऐसा कहते हैं! प्रश्नकर्ता : हाँ, ऐसा हिसाब लगाते हैं, खुद का हिसाब निकालने के बजाय।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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