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________________ आप्तवाणी - ९ माफी माँगता हूँ। मुझे शंका नहीं होनी चाहिए, लेकिन हो गई।' ऐसा उपाय तो होना चाहिए न ?! 'दादा' तो, इस काल के अद्भुत पुरुष हैं, आश्चर्य पुरुष हैं ! १२४ लेकिन आज यदि सिर्फ शुद्ध घी लेकर घूमें तो बिकेगा क्या ? काल कैसा विचित्र है! कोई शुद्ध घी लेकर घूमेगा, तो उसे दुकान का किराया भी खुद भुगतना पड़ेगा ! मिलावटी होगा तो तेज़ी से बिक जाएगा। यह धर्म सच्चा है। यह तो जैसे - जैसे सब का पुण्य परिपक्व होगा, वैसेवैसे लाभ उठाएँगे लेकिन पुण्य परिपक्व होंगे। पुण्य परिपक्व हुए बगैर रहेंगे नहीं। यह तो, जगत् तप रहा है। कैसा तप रहा है, कैसा तप रहा है ! और शंका होने लगे तो कितनी घुटन होगी ? प्रश्नकर्ता : बहुत होगी । दादाश्री : बहुत घुटन होती है या काटता है ? प्रश्नकर्ता : काटता भी है ! दादाश्री : देखना ऐसी कोई शंका मत करना । शंका किसी पर भी मत करना। शंका करने जैसा नहीं है यह जगत् । अंदर दूर तक का दिखता है तभी शंका होती है न! नहीं तो यह शंका, अगर एक बार घुस जाए न, तो जब वह शंका निकल जाए तब काम का ! अब वह यों ही नहीं निकल जाती। इनका सामर्थ्य ही नहीं कि शंका कैसे निकाले ? ! 'ज्ञानीपुरुष' सारी निकाल देते हैं, किसी और का सामर्थ्य नहीं है । कम बुद्धि वाला हो न, तो चलता है । शंका किसे होती है ? बहुत तेज़ बुद्धि वाला हो न, उसे अधिक शंका होती है । मुझे तो चलते-फिरते शंका होती थी, जब तक ज्ञान नहीं हुआ था तब तक । जागृति नहीं हो तो कोई परेशानी नहीं है और जागृत के लिए तो बहुत परेशानी है न ! जागृति हितकारी सिद्ध होती है या टेढ़ी सिद्ध होती है ?
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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