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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध १२१ गलत निकलता है। मेरे साथ कितनी ही ऐसी घटनाएँ हुई हैं ! इन आँखों से देखता हूँ, फिर भी गलत निकलता है। ऐसे उदाहरण 'एक्जेक्ट' मेरे अनुभव में आए हैं तो और कौन सी चीज़ को सही मानें हम लोग? अतः देखने के बाद भी शंका नहीं करनी चाहिए। जानकारी में रखना। हमारी यह खोज बहुत गहरी है। यह तो जब बात निकलती है तब खुद के अनुभव में पता चलता है और दुनिया में कहीं ये सारी शंकाएँ निकल नहीं चुकी हैं। शंका निकलना, वह तो 'ज्ञानीपुरुष' खुद, खुद की ही शंकाएँ निकालने के बाद दूसरों की भी सारी शंकाएँ निकाल देते हैं। वर्ना और कोई निकाल नहीं सकता। इंसान से खुद से शंका नहीं निकाली जा सकती। वह तो बड़े से बड़ा भूत है। वह तो डायन कहलाती है। आप इस तरफ गए हों और वहाँ से कोई व्यक्ति आ रहा हो, वह व्यक्ति किसी स्त्री के कंधे पर हाथ रखकर चल रहा हो और आपकी नज़र पड़े तो क्या होगा आपको? उसने हाथ किसलिए रखा वह तो वही बेचारा जाने, लेकिन आपको क्या होगा? और वह शंका घुसने के बाद, कितने सारे बीज उग जाते हैं फिर! बबूल, नीम, आम, अंदर तूफान ! यह शंका तो डायन से भी अधिक खराब चीज़ है। डायन का चिपटना तो अच्छा है कि ओझा निकाल देता है लेकिन इस शंका को कौन निकाले? हम निकाल देते हैं आपकी शंकाएँ! बाकी, शंका कोई नहीं निकाल सकता। ___ प्रश्नकर्ता : पिछला याद करने से शंका होती है। दादाश्री : उसे याद ही नहीं करना है। बीता हुआ भूल जाना। बीती हुई तिथि तो ब्राह्मण भी नहीं देखते। ब्राह्मण से कहे, 'हमारी बेटी पंद्रह दिन पहले विधवा हो गई थी या नहीं?' तो ब्राह्मण कहेगा, 'ऐसा कोई पूछता होगा क्या? जिस दिन वह विधवा हुई थी, वह तिथी तो गई।' प्रश्नकर्ता : लेकिन कभी-कभी शंका हो जाती है। दादाश्री : भले ही हो, लेकिन कितने सारे पेड़ उग निकलते हैं फिर! बीज एक और सत्रह सौ तरह की वनस्पतियाँ उग निकलती हैं!
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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