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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध ११७ शंका क्यों आनी चाहिए? साफ-साफ होना चाहिए। विचार तो कैसे भी आएँ लेकिन हम 'पुरुष' हुए हैं न? 'पुरुष' नहीं हुआ तो इंसान मर जाएगा। पुरुष हो जाने के बाद कहीं पुरुषार्थ में शंका होती होगी? पुरुष होने के बाद फिर भय कैसा? स्वपुरुषार्थ और स्वपराक्रम उत्पन्न हुए हैं। फिर भय कैसा? प्रश्नकर्ता : शूरवीरता रखनी पड़ती है या अपने आप रहती है ? दादाश्री : रखनी पड़ती है। हम यदि ऐसा नहीं सोचें कि 'गाड़ी का एक्सिडन्ट होगा' तब भी यदि वह होना होगा तो छोड़ेगा क्या? और जो सोचता है, उसे? उसका भी होगा। लेकिन जो सोचे बगैर बैठता है, वह शूरवीर कहलाता है। उसे लगती भी कम है, बिल्कुल कम चोट लगती है और बच जाता है। गाडी में बैठने के बाद ऐसी शंका होती है 'परसों टेन टकरा गई थी, तो आज भी टकरा जाएगी तो क्या होगा?' ऐसी शंका क्यों नहीं होती? अतः जो काम करना है, उसमें शंका मत रखना और अगर आपको शंका हो तो वह काम मत करना। 'आइदर दिस ऑर देट!' ऐसा तो कहीं होता होगा? जो ऐसी बात करे उसे तो उठाकर कहना कि, 'घर जा। यहाँ पर नहीं।' शूरवीरता की बात होनी चाहिए। हमें घर जाना हो और कोई एक व्यक्ति ऐसा कहता रहे, 'घर जाते हुए कहीं टक्कर हो जाएगी तो क्या होगा? या फिर एक्सिडन्ट हो जाएगा तो क्या होगा?' तो सब के मन कैसे हो जाएँगे?! ऐसी बातों को घुसने ही नहीं देना चाहिए। शंका तो होती होगी? समुद्र किनारे घूम रहे हों और कोई कहे, 'अभी लहर आए और खींचकर ले जाए तो क्या होगा?' किसी ने बात की हो कि, 'ऐसे लहर आई और खींचकर ले गई।' तब हमें शंका होने लगे तो क्या होगा? यानी ये 'फूलिशनेस' की बातें हैं। 'फूल्स पेरेडाइज़!' __ यानी जो काम करना हो उसमें शंका नहीं और शंका होने लगे तो करना मत। 'मुझसे यह काम हो पाएगा या नहीं होगा' ऐसी शंका
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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