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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध ब्याज तो भेजा है लेकिन जब से हमें शंका पड़ी कि 'इसे नुकसान हुआ है तो शायद कभी यह मूल रकम नहीं देगा, तो क्या करूँगा ? अब लाख रुपये वापस आएँगे या नहीं ?' उस विचार को पकड़ लिया तो फिर उसका कब अंत आएगा ? शंका रहे, तब तक अंत आएगा ही नहीं, यानी कि उस व्यक्ति का मरण होनेवाला है । १०७ फिर रात को कभी भी आपको इस बारे में शंका हो कि लाख रुपये नहीं आएँगे तो क्या होगा ? पूरे दिन आपको शंका नहीं हुई और रात को जब शंका हुई तब दुःख होता है और पूरे दिन शंका नहीं हुई थी तब क्या उस घड़ी दुःख नहीं था ? रुपये दे दिए हों, उसके बाद 'वापस देगा या नहीं?' ऐसी शंका उत्पन्न होगी, तो आपको दुःख होगा न? तो शंका इस घड़ी क्यों हुई और पहले क्यों नहीं हुई ? प्रश्नकर्ता : उसका क्या कारण है ? दादाश्री : यह अपनी मूर्खता । यदि शंका करनी हो तो हमेशा शंका करो, इतनी अधिक जागृतिपूर्वक शंका करो, उसे रुपये दो तभी से शंका करो । जहाँ लाख रुपये दिए हों, उस समय ऐसा लगे कि 'पार्टी ठीक नहीं है, ' तब भी शंका उत्पन्न नहीं होने देनी चाहिए । 'अब क्या होगा ?' इसी को कहते हैं वापस शंका होना। क्या होना है आखिर ? यह शरीर भी जाने वाला है और रुपये भी जाने वाले हैं। सभी कुछ चला जाने वाला है न ? ! रोना ही है न अंत में ? ! अंत में इसे जला ही देना है न ? ! तो भला पहले से ही मरने का क्या मतलब है ? ! जी न, चैन से ! जब ऐसा होता है तब उस दिन मैं क्या करता हूँ ? 'अंबालालभाई, जमा कर लो, रुपये आ गए!' कह देता हूँ। ऐसा नुकसान उठाने के बजाय चुपचाप रकम जमा कर लेना अच्छा है, सामनेवाला जाने नहीं उस तरह से! नहीं तो लोगों को तो अगर ज्योतिषी कहे न, तो भी मान लेते हैं। ज्योतिषी कहते हैं, 'देखो, कितने अच्छे ग्रह हैं सभी। आपको कुछ
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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