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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध ही संग्रहस्थान है, इसीलिए तो स्त्री - जन्म मिलता है । इन सब के बीच सब से अच्छी बात यही है कि विषय से मुक्त हो जाएँ । ८१ प्रश्नकर्ता : चारित्र में तो ऐसा ही होता है, वह जानते हैं फिर भी जब मन शंका करता है तब तन्मयाकार हो जाते हैं । वहाँ पर कौन सा 'एडजस्टमेन्ट' लेना चाहिए ? दादाश्री : आत्मा हो जाने के बाद और किसी चीज़ में पड़ना ही मत। यह सब 'फॉरेन डिपार्टमेन्ट' का है । हमें 'होम' में रहना है। आत्मा में रहो न ! ऐसा 'ज्ञान' बार - बार नहीं मिलेगा, इसलिए काम निकाल लो। एक व्यक्ति को खुद की पत्नी पर शंका होती रहती थी । उसे मैंने कहा कि शंका किसलिए होती है ? तूने देख लिया इसलिए शंका होती है ? जब तक नहीं देखा था, तब तक क्या ऐसा नहीं हो रहा था ? लोग तो जो पकड़ा जाता है, उसी को चोर कहते हैं । लेकिन जो पकड़े नहीं गए, वे सब भी अंदर से चोर ही हैं लेकिन ये तो, जो पकड़ा गया, उसी को चोर कहते हैं । अरे, उसे किसलिए चोर कहता है ? वह तो सीधा था । कम चोरियाँ करता है इसलिए पकड़ा गया। क्या ज़्यादा चोरी करने वाले पकड़े जाते होंगे? प्रश्नकर्ता : लेकिन पकड़े जाते हैं तब चोर कहलाते हैं न ? दादाश्री : नहीं, क्योंकि जो कम चोरियाँ करते हैं, वे पकड़े जाते हैं, और क्योंकि वे पकड़े जाते हैं इसलिए लोग उन्हें चोर कहते हैं। अरे, चोर तो वे हैं जो पकड़ में नहीं आते हैं लेकिन जगत् तो ऐसा ही है। तब फिर वह व्यक्ति मेरा विज्ञान पूरी तरह से समझ गया । फिर उसने मुझसे कहा कि, 'मेरी वाइफ को अब कोई दूसरा हाथ लगाए, तब भी मैं गुस्सा नहीं करूँगा ।' हाँ, ऐसा होना चाहिए। मोक्ष में जाना हो तो ऐसा है। वर्ना झगड़े करते रहो। आपकी 'वाइफ' या आपकी स्त्री इस दुषमकाल में आपकी हो ही नहीं सकती और ऐसी गलत आशा रखना ही बेकार है। यह दुषमकाल है, इसलिए इस दुषमकाल में तो जितने दिन
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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