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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध यदि हमें कोई कहता था न कि, 'शंका शुरू हुई है।' तो हम तो उसे सिखाते थे कि, 'शंका को जड़मूल से उखाड़कर फेंक दो।' शंका रखने जैसा नहीं है। शंका से इंसान खत्म हो जाता है। किसी भी स्थिति में शंका नहीं रखनी चाहिए। फिर जो होना हो वह हो। शंका तो रखनी ही नहीं है क्योंकि जो कुछ भी होनेवाला है शंका रखने से वह कहीं कम नहीं हो जाता, बल्कि बढ़ता है। शंका और वहम वगैरह ऐसे बहुत तरह के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। शंका का रोग, और फिर वहम का रोग उत्पन्न होता है। प्रश्नकर्ता : तब फिर मनुष्य की शंका किस तरह से निकल सकती है? दादाश्री : कभी भी नहीं निकल सकती इसलिए शंका को घुसने ही नहीं दे तो बहुत हो गया। प्रश्नकर्ता : लेकिन वह जो शंका घुस गई है, वह किस तरह निकलेगी? दादाश्री : वह तो अगर हमारे पास विधि करवाए तो उसे उससे छुड़वा सकते हैं। पर अंदर शंका उत्पन्न नहीं होना, वही मुख्य चीज़ है। प्रश्नकर्ता : लेकिन शंका का समाधान तो होना चाहिए न? दादाश्री : हाँ, शंका जाएगी तब कुछ ठीक होगा। ऐसा है न, यहाँ रात को आप सो गए हों और एक इतना छोटा सा साँप घर में घुसते हुए दिखा, फिर आपको घर में सोना पड़े तो क्या होगा? शंका रहेगी न? वह साँप निकल गया हो लेकिन आपने देखा नहीं हो, तो आपको शंका रहेगी या नहीं रहेगी? तो बाद में फिर क्या दशा होगी? उसके बाद नींद कितनी अच्छी आएगी? प्रश्नकर्ता : नींद उड़ जाएगी! दादाश्री : अब जो इस बारे में नहीं जानते, उन्हें नींद आएगी और जानने वाले लोग मन में ऐसा सोचते रहेंगे कि, 'अरे, हमने देखा है,
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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