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________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध इसलिए आप वहाँ पर जाओ।' वे अगर संपूर्ण कहेंगे तभी वहाँ पर बैठेंगे, नहीं तो ये लोग खड़े रहेंगे बेचारे! और शंका होती रहेगी कि, 'यह होगा या वह होगा? ये होंगे या वे होंगे?' प्रश्नकर्ता : तो फिर वहाँ पर टकरा नहीं जाते? किसी भी जाँचपड़ताल की जड़ तो शंका ही होती है न? दादाश्री : जाँच-पड़ताल करके और सोच-समझकर खिसक जाना चाहिए हमें! जाँच करना, सोचना और हट जाना। शंका को बीच में लाने का कोई कारण ही नहीं है। शंका कब होती है ? कि दोनों में 'एग्रीमेन्ट' हो चुका हो उसके बाद बीच में कुछ गड़बड़ हो जाए, तब शंका उत्पन्न होती है। यों ही तो शंका नहीं होती। अर्थात् शंका कहाँ पर होती है ? कि दोनों का कोई संबंध हो, उन दोनों में खुद के 'डिसाइडेड' अनुसार उससे कुछ अलग हो जाए तब शंका होती है कि यह क्या है! उसमें भी एक मिनट से अधिक शंका नहीं रखनी चाहिए। फिर तो उसे तय कर लेना चाहिए कि मेरा 'व्यवस्थित' ऐसा है। लेकिन शंका तो करनी ही नहीं चाहिए फिर। शंका अर्थात् आत्महत्या! रखना, वहम का इलाज प्रश्नकर्ता : इंसान के मन में जो वहम आता है, वह क्या है? दादाश्री : कहाँ से आता है ? किसी जगह से एक्सपोर्ट होना चाहिए न? तभी अपने यहाँ इम्पोर्ट होगा न! किसी व्यक्ति ने दिन में भूत की बात सुन ली हो कि फलाने भाई को भूत लग गया है। उसकी पत्नी पीहर गई हुई हो, और वे भाई रूम में अकेले सो गए। सो जाने के बाद फिर रसोईघर में चूहे ने कोई प्याला खड़खड़ाया होगा! रात को बारह बजे प्याला खड़का और उस व्यक्ति ने आवाज़ सुनी। दिन में उसने भूत की बात सुनी थी, वह एविडेन्स इसमें मिल गया, इसलिए उसके मन में हुआ कि, 'कुछ है ! इतना बड़ा
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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