SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [२] उद्वेग : शंका : नोंध जाप करने से बंद हो जाता है लेकिन अगर बड़े प्रकार का आए तब तो वहाँ पर सभानता रहती ही नहीं है न! आपको ये तीन शब्द समझ में आए ‘एक्जेक्ट' ? उनकी अपनी जगह पर? प्रश्नकर्ता : इन तीन शब्दों पर किसी 'पीएच.डी' वाले ने पूरी पुस्तक लिखी होती न और पढ़ी होती न, तब भी समझ में नहीं आ पाता, और यह आपके कहने से समझ में आ गया। दादाश्री : यानी ये शब्द जब उनकी अपनी जगह पर शोभायमान होंगे तभी उन शब्दों का अर्थ मिलेगा, वर्ना नहीं मिलेगा। उनकी अपनी जगह पर शोभायमान होने चाहिए। वेग को उद्वेग पर बिठा देंगे तो क्या होगा? वह चीज़ दूसरी जगह पर शोभायमान होगी भी नहीं। लोग शब्दों को कैसे भी बोल देते हैं, शोभायमान हों या नहीं हों, उसकी कुछ पड़ी ही नहीं न! ये लुच्चे लोग उनकी अपनी जगह पर शोभा देते हैं। जेब कतरे उनकी अपनी जगह पर शोभा देते हैं और हीरे के व्यापारी उनकी अपनी जगह पर शोभा देते हैं। नहीं तो जेब कतरे के साथ हीरे के व्यापारी आए तो शोभा देगा क्या? चारों ओर से काट लेंगे इसलिए हर कोई अपनीअपनी जगह पर शोभा दे रहा है। लोग वैधव्य का तिरस्कार करते हैं। अरे, वैधव्य शब्द उसकी अपनी जगह पर शोभित हो रहा है। विवाह और वैधव्य दोनों 'एक्ज़ेक्ट' ही हैं। उद्वेग, कितनी मुश्किल प्रश्नकर्ता : मतभेद के कारण भी उद्वेग तो हो जाता है न? दादाश्री : हाँ। मतभेद से ही उद्वेग होता है। जब सबकुछ ‘एक्सेस' हो जाता है, उसके बाद उद्वेग शुरू हो जाता है। जब हद से बढ़ जाए तब। लोग छुरी भोंक देते हैं न, चाकू मारते हैं न! वे उद्वेग होने पर ही मारते हैं।
SR No.034040
Book TitleAptvani 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2018
Total Pages542
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy