SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 96
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीपाल ने निष्फल प्रवृत्ति कभी नहीं की, क्योंकि इसमें श्रम-समय और संपत्ति का ही व्यय है और अंत में दु:खी होने का ही अवसर आता है । वो समझते थे कि युवावस्था होने के बाद भी जब तक सामर्थ्य नहीं आया तब तक अपना राज्य पाने का प्रयत्न तो ठीक है, विचार भी करने जैसा नहीं है । कदाचित् भाग्य योग से राज्य मिल भी जाए तो भी कोढ़ी अवस्था में राज्य संचालन करना ठीक नहीं है । इससे राज्य-प्राप्ति की गहरी गहरी इच्छा होते हुए भी उन्हे तत्काल राज्य लेने का विचार भी नहीं आता। श्रीपाल कन्या की खोज में घूम रहे है, पर कहीं भी राजकुमारी की मांग नहीं की । समझते है कि इसमें निष्फलता ही मिलने वाली है तो क्यूं ऐसी प्रवृत्ति करूँ ? मैं राजकुमार हूँ, राजा हूँ, तो मुझे राजकुमारी ही मिलनी चाहिए, ऐसी जिद नहीं रखी लेकिन स्थिति योग्य प्रवृत्ति ही की । बाद में भले पुण्य योग से मयणा मिली मगर उनकी प्रवृत्ति परिस्थिति अनुरुप थी, निष्फलता मिले ऐसी नहीं थी। श्रीपाल के इन प्रसंगो को ध्यान में रखकर चारित्र पद और तप पद की आराधना द्वारा निष्फलारंभी की वृत्ति रुप भवाभिनंदी का दोष टालने का प्रयत्न करना है। उपसंहार - भवाभिनंदी के आठ दुर्गुण-दोष भवभ्रमण का कारण है । ये जब तक दूर नहीं होंगे तब तक धर्म क्रिया सबीज नहीं हो सकती और आत्मकल्याण का मार्ग नहीं मिल सकता । नवपद-आराधना इन्हें दूर करने का श्रेष्ठ उपाय है । एक-एक पद की आराधना से भवाभिनंदी का एक-एक दोष दूर होता है । हमारे जीवन में जिस दोष का प्रभाव दिखता है उस पद की विशिष्ट आराधना रुप तप-जप-कायोत्सर्ग-ध्यान के माध्यम से द्रव्य-भाव आराधना द्वारा इन्हें दूर करने का प्रयत्न करना है । भवाभिनंदी, पुद्गलानंदी और आत्मानंदी इन तीन प्रकार के जीवों की भूमिका में से हमारी भूमिका कौन सी है, इसका अंतर निरीक्षण करना जरुरी है । आत्मानंदी की भूमिका पाने के लिए कटिबद्ध बनने में ही सिद्धचक्र की आराधना की सफलता है । 480 । श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy