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________________ आंटियाँ पड़ चुकी है, वो सीधी होती ही नहीं है । संसार चलता ही रहता है । इस दोष को हटाने के लिए दर्शनपद की आराधना का सूचन किया गया है । सम्यग्दर्शन से मोहनीय कर्म फीका पड़ जाता है, तत्वज्ञान का भान होता है, विवेक दृष्टि खीलती है । जीवन में सरलता आती है, यथोचित प्रवृत्ति करने की सूझ होती है । अपनी भूल दिखाई देती है । कर्म-लघुता हो जाने से अंतर-प्रकाश खिलता है । यह सम्यग्दर्शन की भूमिका है। उंबर राणा को सिद्धचक्र की आराधना फली, उसमें सरलता का ज्यादा महत्व रहा है। माया-प्रपंच उनके जीवन में कही नहीं था, सरलता ही नहीं, अति सरलता थी । भले वो कन्या की शोध हो, धवल के साथ का व्यवहार हो, महाकाल राजा का संबंध हो या अजितसेन राजा से राज्य वापिस लेने की बात हो पर हर जगह सरलता । उंबर-श्रीपाल की सरलता भी नम्रता और विनय युक्त थी । मायावी, वक्रस्वभावी, और शठ व्यक्तियो के साथ भी उनकी सरलता अखंड़ित रहती थी । दुर्जन व्यक्तियो का संसर्ग होने पर भी कहीं भी दोष का कीचड़ उन्हे स्पर्श भी नहीं कर सका । श्रीपाल इन परिस्थितियों में सदा जलकमलवत् रहे है । श्रीपाल का आलंबन लेकर सम्यग्दर्शन पद की आराधना से हमारे मिथ्यात्व को गलाकर जीवन में से शठता ढूँढ-ढूँढ कर जीवन में सरलता गुण की स्थापना प्राप्ति का संकल्प आज से करना है । (७) अज्ञानता – अज्ञानता यानि ज्ञान का अभाव या विपरीत बुद्धि । ज्ञान ही नहीं होना या रहस्य का भान नहीं होना, अज्ञानता है । अज्ञानता के कारण जीव जहाँ-तहाँ भटकता है । अंधा व्यक्ति या जिसकी आँखो पर पट्टी बंधी है, दोनो चले तो टकराते-गिरते जाते है । अज्ञानी जीव को सत्यासत्य का भान नहीं होता, परिणामतः संसार में घूमता रहता है। अज्ञानी जीव दो प्रकार के होते है, (१) जिन्हे कुछ आता ही नहीं है, (२) आता ही नहीं है तो भी यह नहीं मानते कि नहीं आता है, या खुद ने जो माना है वह आत्मा के लिए हितकारी है या नहीं ? यह नहीं सोचे यह सब श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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