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________________ 9. किया हुआ धर्म कभी निष्फल नहीं होता आचरित धर्म-आराधना भवान्तर में कहीं न कहीं आत्म-कल्याण के लिए उपयोगी बनती है, वो निष्फल नहीं जाती, यह बात अजितसेन राजा के जीवन-प्रसंग में स्पष्ट परिलक्षित होती है । ___ श्रीपाल को जान से मारने के लिए भीषण युद्ध हेतु तैयार हुए, भयंकर रौद्र ध्यान में रत होने पर भी उसी युद्धभूमि में अजितसेन राजा को वैराग्य भाव उत्पन्न हुआ, और सर्व संग का त्याग कर आत्म-स्वरुप में रमणता कराने वाला संयम जीवन स्वीकार कर लिया । रौद्रध्यान में भटकते व्यक्ति को अचानक स्वरुप रमणता-वैराग्य भाव आया कैसे? पूर्व के सिंहरथ राजा के भव में अजितसेन राजा ने जीवन की ढ़लती संध्या में संयम स्वीकार कर, विशुद्ध आचार का पालन कर अंत में एक मास का अनशन किया है । इस त्याग, संयम और स्वरुप रमणता के संस्कार आत्मा पर जाम हो चुके है । ___किसी दुष्कर्म के कारण आत्मा चाहे जैसी अवस्था में चली गई हो, तो भी योग्य समय पर उचित निमित्त मिलते ही 'समझदार को इशारा ही काफी होता है' कि तर्ज पर पूर्वकाल के शुभ संस्कार जाग्रत होकर आत्मा को पुनः अध्यात्म यात्रा में आगे बढ़ाते है । किया हुआ धर्म कभी निष्फल नहीं जाता । शालिभद्रजी के प्रसंग में भी ऐसा ही हुआ है । ग्वाले के भव में खीर वहोराते सर्वस्व समर्पण का भाव आ गया , इसमें भी पूर्वभव की आराधना के संस्कार श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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