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________________ 7. एक अनुचिंतन श्रीपाल कथा यानि अपनी आत्मकथा श्रीपाल कथा धर्मकथानुयोग तो है ही, परंतु इस कथा का यौगिक और आध्यात्मिक रीति से निदिध्यासन और चिंतन किया जाए तो विशिष्ट तत्व प्राप्त होते हैं । किसी भी कथा को अपने जीवन या आत्मा में घटाने के लिए ज्ञान नहीं, प्रज्ञा की जरुरत है । एक बार दृष्टि खुल जाए, फिर हर कथा पर इस तरह विचार किया जा सकता है I — • श्रीपाल यानि हमारी आत्मा । श्रीपाल कथा में श्रीपाल का प्रवेश कोढ़ी के रुप में होता है । हाल बेहाल है, संपत्ति, वैभव, सत्ता, सब चला गया है । गाँव-गाँव भटकना पड़ रहा है । हमारी आत्मा भी कर्मरुपी कोढ़ से ग्रस्त है । गुण संपत्ति, आत्म वैभव, स्वरमणता की सत्ता सब कुछ गुम हो चुका है, और एक भव से दूसरे भव में भ्रमण चालू है । उंबर को सद्विचार वाली मयणा मिलती है, फिर उसकी अच्छी स्थिति के द्वार खुलते है, हमें भी सन्मति ( कषायो का उपशमन) आए फिर अध्यात्म स्थिति के द्वार खुलते है । श्रीपाल को स्वस्रनामाज्य पाना है तो एकाकी बनकर पुरुषार्थ करने निकलते है, ससुरजी या अन्य किसी की सहायता की इच्छा नहीं करते । श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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