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________________ चूक जाता है, नीचे गिरता है, हाथ में रही खुली कटारी पेट के मर्म भाग में घुस जाती है, सौ साल पूरे हो जाते है, और सातवी नरक मे चला जाता है । अत्यंत धनवान श्रेष्ठी, बुद्धिशाली, सफल व्यापारी को भयंकर दुःख देनेवाली सातवीं नरक के भयंकर दुःख झेलने पड़ते है । धवल का जीव वहाँ से हमें चिल्ला-चिल्लाकर कह रहा है कि आखरी समय तक नहीं जागोगे, ईर्ष्या, आसक्ति, छीनने की प्रवृत्ति, इकट्ठा करने के भाव नहीं छोड़ोगे, तो मेरी तरह दुर्गति के द्वार खुले ही हैं । जागो ! जाग जाओ ! नहीं तो मारे जाओगे । I धवल का संदेश....हमे सुनने में आ रहा है या नहीं ? क्या बनना है यह हमें ही निश्चित करना है । जन्मजात गुणवान....श्रीपाल, दोष दूर कर जाग जाएँ तो.... अजितसेन, दोषों के साथ मरें तो... धवल श्रीपाल नहीं बन सकते तो कमसे कम अजितसेन भी बन जाएंगे तो भी सद्गति हो सकती है, आत्मकल्याण का द्वार खुल सकता है 1 निसीही सिद्धचक्र के प्रभाव से श्रीपाल निरोगी बने, स्वरुपवान बने, कोढ़ी के बदले ऐसे स्वरुपवान कुमार के साथ अपनी पुत्री मयणा को देखकर रुपसुंदरी रोने लगी, फिर पता चला कि, यह स्वरुपवान कोढ़ी ही है, तब हर्षित माता पूछने लगी कि यह कैसे हुआ ? तब मयणा कहती है कि जिनालय में वार्तालाप करने से 'निसीहि' का भंग होता है । यहाँ कोई बात कभी नही होती । विधि पूर्ण होने पर घर जाकर कमलप्रभा (श्रीपाल की माता) सब बात करती है । विकट परिस्थिति में अलग हुएँ माँ-बेटी बहुत समय बाद इकट्ठा होते है, पर जिनालय में बातें नही करते है । जिनशासन की विधि का कितना विवेक ! कितनी मर्यादा ! | (34) श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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