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________________ कर्तव्य है, किन्तु उन्होंने सेना-भेद कर राज्य छिन लिया । श्रीपाल को मारने के लिए सैनिक भेजे । सक्षम होने पर श्रीपाल ने मधुर शब्दों मे राज्य की मांग की, तब भी राज्य नहीं लौटाया, बल्कि पुनः मारने के लिए तैयार हो गए। धवल से अजितसेन अधिक दुर्जन है क्योंकि कर्तव्य भूलकर मारने के लिए तैयार हुए है। रक्षक ही भक्षक बन गए है। धवल को तो ईर्ष्या होने के निमित्त मिले, उसने ईर्ष्या की पर श्रीपाल का कुछ नहीं ले सका । श्रीपाल के जीवन में दुःख का मूलभूत कारण अजितसेन है । धवल जब-जब दुःख देने गया, तब-तब श्रीपाल को सुख-संपत्ति का और कन्याएँ मिलती है। श्रीपाल को आंच तक नहीं आई । धवल के द्वारा दिए जाने वाले दुःख के समय श्रीपाल धर्म की शरण लेते है, जिससे आबाद बच जाते है । अजितसेन ने जब राज्य लिया तब धर्म की शरण नहीं थी। श्रीपाल छोटे थे तब अजितसेन ने राज्य छिन लिया पर संतोष नहीं है । सगा भतीजा है पर पुनः जान से मारने के लिए तैयार हो गए, स्वयं ही युद्ध करने जाते है। दोनो में अधिक दुर्जन अजितसेन है, अब जरा सोचिए - जन्म से गुणवान हो, दुश्मन का भी भला करने की भावना हो, लूँ-लूँ की आकांक्षा नहीं हो तो समझना कि श्रीपाल की फ्रेम में हम फिट हो सकते हैं, पर यह तो संभव नहीं है, तो अब क्या बनना है ? धवल या अजितसेन । अजितसेन अधिक खूखार है । व्यवहार चुके है। सगे भतीजे का राज छिन लिया है, फिर भी एक सुंदर उपदेश-संदेश अजितसेन हमें देते है, "आपका भूतकाल चाहे जितना भी खराब हो । जाग जाओगे तो बच जाओगे, तिर जाओगे । जब तक जीवित हो तब तक सुधरने का अवसर श्रीपाल के साथ युद्ध में अजितसेन हारते हैं, सैनिक अजितसेन को बांधकर श्रीपाल के पास लाते है । श्रीपाल उनके बंधन खुलवाकर पैर में गिरते है, माफी मांगते है और उनको राज्य स्वीकारने का कहते है, और सिर्फ 430 श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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