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________________ श्रीपाल के वैभव-संपत्ति ओर राजपाट की बातें सुनकर उस तरफ नजर जाती है, पर कभी श्रीपाल के अंतरगुण, गुणसंपत्ति, आत्मवैभव, आराधक भाव, उपकारवृत्ति, निर्दोषता, अनासक्त भाव, ध्यान, साधना की ओर नजर गई या नहीं। श्रीपाल हमें संदेश देते है कि..... • प्रभु मिले तो निर्भय बनो । • प्रभु के प्रति श्रद्धा रखो ।। • अनासक्त भाव बनाए रखो । • निवृत्त बनकर प्रभु में प्रवृत्त बनो । • आराधना भावपूर्ण और परिवार के साथ करो । श्रीपाल की तरह अंतरवैभव-अंतरगुणवैभव में रमणता करो । आराधना के साथ ध्यान उंबर (श्रीपाल) सिद्धचक्र-नवपद की आराधना के साथ नवपद का ध्यान करते थे । जो आराधना करते हो उसमें सतत उपयोगप्रणिधान रखना ध्यान ही है । किन्तु आराधना, प्रतिक्रमण, काउस्सग्ग, खमासमणा, माला आदि करने के बाद भी आरंभ-समारंभ का त्याग कर के तच्चित्त बना रहना, उसके स्वरुप चिंतन के माध्यम से पिंडस्थादि ध्यान योग में स्थिर होना है, इसकी वर्तमान समय में अत्यंत कमी दृष्टिगोचर हो रही है । श्रीपाल ४ ।। साल की आराधना दरम्यान और उसके बाद भी सतत ध्यान में ही रहते थे । श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा 27
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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