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________________ एक दिन शाम को श्रीपाल घुडसवारी कर रहा था । देवकुमार जैसे रुपवान युवान को देखकर किसी प्रजाजन ने दूसरे से पूछा, ''यह कौन है ?'' उसने जवाब दिया, ''अपने राजा का जमाई है ।" धीरे से बोले गये यह शब्दा श्रीपाल के कानो से जा टकराएँ । शब्दों से श्रीपाल चौंक गए । यह क्या ? मैं ससुरजी यानि दूसरे के माध्यम से पहचाना जाऊँ ? मेरी स्वतंत्र पहचान नहीं है ? मैं मेरे अपने भावों से क्यों पहचाना जाऊँ ? विचारों मे चडे और गहरे उतर गए । अपनी पहचान बनाने का दृढ निश्चय कर लिया । घर गए, चैन नहीं पड रहा है । माँ बेटे को उदास देखकर चिंतित होकर पूछती है, ''बेटा ! क्या हुआ ? किसी ने कुछ कहा ? अपमान किया ? कोई रोग सता रहा है ?'' वात्सल्य भाव से पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देते उदासमुखी श्रीपाल ने कहा, 'कुछ नहीं ।'' बहुत पूछने पर कहा, "मैं राजपुत्र हूँ, तो भी मेरे नाम से, गुण से नहीं, ससुरजी के नाम से पहचाना जाता हूँ, यह आज पता चला है । 'यह राजा का जमाई है' इन शब्दोंने मुझे हिला दिया है । अब मैं अपने नाम से पहचाना जाऊँगा । अपना राज्य पाकर 'अपने साम्राज्य का स्वामी हूं' इस तरह पहचाना जाऊँ तभी शांति होगी । I श्रीपाल पहली बार ससुरजी के नाम से पहचान सुनकर जाग गए । अपना राज्य पाने का दृढ संकल्प कर लिया । श्रीपाल हमें संदेश दे रहे है, पर से नहीं स्व से पहचाने जाओ, अभी हम देह के नाम से पहचाने जा रहे हैं । जब तक आत्म–साम्राज्य पाने का दृढ संकल्प नहीं करोंगे, तब तक कर्मसत्ता स्वसाम्राज्य याद भी नही आने देगी । श्रीपाल कहते है, ''जाग जाओ और दृढ संकल्प करो ।” माता के प्रति आदर भाव रखो, सेवा करो । श्रीपाल को राज्य पाना है, इसके लिए सैन्य चाहिए, सैन्य के लिए संपत्ति चाहिए । बाहुबल से संपत्ति पाने के लिए श्रीपाल परदेशगमन की तैयारी करते है । मयणा भी साथ जाने के लिए उत्सुक है । श्रीपाल - मयणा के हर वचन का पहले से ही आदर करते आ रहे हैं । प्रथम प्रभात में प्रभु - श्रीपाल कथा अनुप्रेक्षा (17)
SR No.034035
Book TitleShripal Katha Anupreksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNaychandrasagarsuri
PublisherPurnanand Prakashan
Publication Year2018
Total Pages108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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